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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
२२१ देवनसों कहे हैं देव हो आज मो ऊपर कालका किंकर कोप्या सो मोपर सों ऐसा सुरपदका सुख छुड़ावे है अरु खोटी गतिमें नाखे छै ई दुख सहवाने में समर्थ नाहीं। धनीमें काई काई कहूं म्हारा दुखकी बात सर्वज्ञ देव जाने छै और जानवा सक नाहीं ऐसा दीनपनाका वचन सुन परवारका देव तामें कोई बुद्धिवान देव शास्त्रका परगामी कहता हूवो हे नाथ हे स्वामी हे प्रभो ऐसा दीनपनाका वचन क्यों कहो । या दसा तो सबन की होनी ही है। जो कालसू काहूको जोर नाहीं ई कालका बस त्रैलोकका जीव है । जासू अब एक धर्म ही सरण है। सो थें भी धर्मको सरन लेहु आरतने छोड़ो आर्तध्यान तिर्यंच गतको कारण छै । अरु परंपराय अनन्त संसार करे छै तीसू अबार किछू गयो नाहीं अब सावधानी सहित भगवानकी पूजा करो । वारा अनुपेक्षाको चिंतवन करो अरु अहंत देवको सुमरन करो। अरु आपना सहनानन्दका सम्हार करो स्वरसने पीवो जासू जामन मरनका दुख विलय जाय अरु सास्वता सुखने पावो ई संसारसू श्री तीर्थकर देव भी डरया शीघ्रतासूं राजसंपदाने छोड़ बनमें जाय वस्या, तीसों थाने भी यो करनो जोग्य है । अरु सोक करनो जोग्य नाहीं पीछे वारंवार श्रीनीने याद करता हवा अरु धर्ममय बुद्धि करता भया अरु वारा अनुपेक्षा चिंतवतो वो । काई चिन्तवतो हूवो देखो भाई कुटुम्ब परवार है सो बादरकी नाई विलय जासी तथा जैसे साझ समै वृक्षपे दसू दिससू अनेक पक्षी आन बसे प्रात समैं दसू दिस जाते रहे अथवा जैसे हाटमें अनेक व्यापारी हटया भेले. होय पीछे दोय चार दिनमें नाका काम होय