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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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MAAVAVANAANNA
अनन्त गुनभंडार जय निज परनतिमें रमनहार जय भव समुद्रके तरनहार जय सर्व दोषके हरनहार जय धर्मचक्रके धरनहार हे प्रभूनी परम देव थें ही हो अरु हो प्रभूनी देवांका देव थे ही हो आनमतके खंडनहार थें ही हो अरु हो प्रभूजी मोक्षमारगके चलावनहारे थें ही हो। भव्य जीवनकू प्रफुल्लत थे ही हो अहो प्रभूजी जगतका उद्धारक थें ही हो । जगतका नाथ थें ही हो अरु कल्यानके कर्ता थेई हो दयाभंडार थें ही हो अहो प्रभूजी समोसरनको लक्ष्मीसू विरक्त थेई हो । प्रभूजी जगत मोहत्राने समर्थ थेई हो अरु उद्धार करवाने भी थेंई समर्थ हो प्रभूजी थाका रूप देखकर नेत्र त्रिप्त न होयं अहो भगवानजी आजकी घड़ी धन्य है । आजका दिन धन्य है। सो में थांको दर्शन पायो सो दरसन करवा थकी बहु कृत कृत्य हूवो अरु पवित्र ह्वो कारन करनो हो आज में कियो । अब कार्य करनों क्यों रहो नाहीं। अहो भगवानजी थाकी स्तुति कर जिह्वा पवित्र भई अरु बानी सुन श्रवन पवित्र भयो अरु दर्शन कर नेत्र पवित्र हुआ अरु ध्यान कर मन पवित्र हुआ अष्टांग नमस्कार कर सर्व अंग पवित्र हूवो और हे भगवाननी मेरे ताई ऐते प्रश्नका उत्तर कहो आपके मुखारविन्द तें सुन्या चाहूं हूं सोई कहिये है हे प्रभू हे देव सप्त तत्वका स्वरूप कहो अरु पंचास्तिकायका स्वरूप कहो अरु पट द्रव्य नव पदार्थका स्वरूप अरु चौदह गुनस्थ न वा चौदह मार्गनाका स्वरूप अरु अष्टकम स्वरूप वा उत्तर कर्म का स्वरूप हे स्वामी मोने कहो । प्रथमानुयोग करनानुयोग चरनानुयोग द्रव्यानु योग इनका स्वरूप कहो स्वामी तीन काल वा तीन लोकका स्व