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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
ऊगता सुर्य समान लाल वा फटक मन मई स्वेत ऐमा है वर्न जाका बहुरि अनेक प्रकारके आभूषन रतनमई पहिरे है। अरु मस्तक ऊपर मुकट सो धारे हैं। अरु हजारां वरस पीछे मानसीक अमृतमई अहार ले हैं । अरु केतेक मास पीछे सांस उस्वास ले हैं । अरु कोड्या चक्रवर्त सारखे वल है । अरु अवधि ज्ञानकर . आगला पीछला भवके वा दूरवर्ती पदार्थका वा गृह पदार्थकू वा. सूक्ष्म पदार्थकू निर्मल पुष्ट जाने है । अरु आठरिद्ध वा अनेक विद्या वा वैक्रियाकर संयुक्त है जैसी इच्छा होय तैसा ही करे । बहुरि रेशम सों असंख्यात गुनी विमानकी भूमिका है अरु अनेक प्रकार रतनीका चून साढस्य कोमल चूल है । अरु गुलाब अंबरी केवड़ा केतुकी चमेली जाय सेवती नर्गसराय वेलसोन जुही मोगरा सुगंधरा चंपा आदि दे पहुपनका चून समान सुगंधमई रज है । अरु कहीं अनेक प्रकारके फूल तिनकी वाड़ी सुगंध वाड़ी सोभे है । अरु कोटक सूर्य सारखो ता रहित सात मई प्रकाश है । अरु मंद सुगंधि पवन बाजे है मानू पवन नाहीं बाजे देवतानके आनन्द उपजावे हैं । अनेक प्रकारके रतनमई चित्राम हैं । अरु अनेक प्रकारके रतन भी सोभे हैं । तेठे वनमें अनेक बावड़ी निवान पर्वत सिला सोभे हैं । तेठे देव कीड़ा करें हैं। बहुरि देवनके मंदिरके अनेक प्रकारके रतन लागे हैं। रतनमई है । महामनोहर दंडनपर लागी धुना हाले हैं । सो मानूं धर्मात्मा पुरुषनकू सेनकर बुलावे है । कांई कह बुलावे हैं या कहे है आवो आवो ऐसा यहां सुख है जो और ठौर दुर्लभ जासूं इठां आय सुख भोगो आपना किया करतव्य ताका फल ल्यो बहुरि,