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ज्ञानानन्द श्रावकाचार । ___२०९ लागे तातै प्रतिमा जो साक्षात तीर्थंकर महाराजकी छवी है ताकी, पूजा भक्ति किये महा फल उपजे है । यहां कोई फेर प्रश्न करे जो अनुमोदना करे तो वाका सुमरन ही करवो करे मूर्ति काहेको बनावे ताको कहिये है सुमरन किये तो वाका परोक्ष दर्सन होय। साहस्य आकार बनाये प्रतिदर्शन होय सो परोक्ष बीच प्रतक्ष विर्षे अनुराग विशेष उपनै है। अरु आत्मा द्रव्य है । सो डीला कभी दीसे नाहीं डीलाका भी वीतराग मुद्रा स्वरूप शरीर ही दीसे है ताते भक्त पुरुषने तो मुखपनों वीतराग सरीर ही का उपगार है। भावे जंगम प्रतमा होय भावे थावर प्रतमा होय दोन्याका उपगार साहस्य है । जंगम नाम तीर्थंकरका है। थावर नाम प्रतमाका है । जैसे नारद रावन ने सीताका रूपकी वार्ता कही तबतो रावन थोरा आसक्त भया प्रीछे वाका चित्रपट दिखाया तर विशेष आसक्त भया ऐसा प्रतक्षं परोक्षका तातपर्ज जानना सो वे तो चित्रपट जथावत न था अरु प्रतिमाजीका यथावत रूप है । तातै प्रतिमाजीका दर्सन किये तीर्थंकरका स्वरूप आद आवे है । ऐसा परमेश्वरकी पूजा कर बहुरि वे देव कांई करे अरु कैसा कहे है सो कहिये है । जैसे बारा वरसका राजहंस पुत्र सोभायमान दीसे है। तासूं भी असंख्यात असंख्यात. अनन्त गुना तेज प्रतापकू लिया सोभे है बहुरि कैसे है शरीर जाका हाड़ मास मल मूत्रके संसर्ग कर रहित कोट सूर्यकी जोतने लिया महा सुन्दर शरीर हैं । वा वहु मोलो अन्तर तासूं भी अनन्त गुनी सुगंधमई शरीर है। अरु ऐसे ही सुगन्धमई उस्वास आवे है । बहुरि सोवर्नमई पीत तपाया सोना समान लाल अथवा
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