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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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है । अरु परम सुखने बांधे है । सो यह भूल केवल तुमारे उपदेश विना वा तुमारे गुन जाने बिना तुमारी आज्ञा सिरपर धारे बिना त्रिकाल त्रिलोकने दुखका कारसा मोह ताने जीत सके नाहीं । अरु मोहने जीत्या बिना दुखकी निर्वृति होय नाहीं निराकुल सुखकी प्राप्ति नाहीं तातें तुम शीघ्र ही मेरा परम वैरी मोह ताका विनाश करो, यह कारज आपहीने करनो आयो, ताका विचार कहा करना अरु मो औगुन दिस कहा देखना, में तो औगुनका पुंज हूं सो अनादिका बन्या हूं । सो मेरा औगुन देखो तो परम कल्यान कारकी सिद्धि नास हुई। औगुन ऊपर गुन तुम हीसे सत्पुरुष करें है । कुदेवादिक नीच पुरुष हैं ते गुन ऊपर औगुन ही किया में तो वाने भला जान सेया पूज्या वंद्या स्तुति कीनों तो भी मोने अनन्त संसार में रुलाय महा त्रास दीनो ती वेदनाकी चारता बचनान कर न कही जाय सो कैसे हैं सत्पुरुष ताका दिष्टान्त दीने हैं । तैसे पारसने लोहका घन सो ठोके सो पारस ऊने सुवर्णमई करे | चंदनने ज्यूं ज्यूं घिसे त्यूं त्यूं सुवास देय ईखने ज्यूं ज्यूं छेदे त्यूं त्यूं अमृत रस देय । जल आपले दुग्धने वचाय लेय । सो ऐसा जाका जात सुभाव है । काहूका मेटा मिटे नाहीं सर्प दुग्ध दधि पिये परन्तु वह प्रान ही हरे सन आपना चाम उपड़ाइ अन्यकू बांधे माखी अपना प्रान देय ओराने बाधा उपजावे सो ये कुदेवादिक जे दुर्जन पुरुष ताके स्वभाव सम जानना याका सुभाव भी मिटै नाहीं । मंत्र यंत्र तंत्र नाहीं तातैं सुभाव तर्कनासे सो अब जिनेन्द्रदेव तुमारे प्रसाद कर कुदेवादिकका स्वरूप भली भांति जान्या सो