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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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बहुरि पुरुष स्त्री तिर्यंच इनका संचार न होय । अगल बगल भी इनका शब्द न होय । ऐसा एकान्त निजतु स्थान अपनी अटारीमें व जिनमंदिरमें वा सूना ग्रहमें वा वन पर्वत गुफा विर्षे ऐसे शुद्धक्षेत्रमें सामायिक करे अरु कालका प्रमान कर लीनिये जा क्षेत्रमें तिष्टा होय सो क्षेत्र उठना बैठना नमस्कार करता दसों दिसा सपर्सनमें आवे । सो तो क्षेत्र मोकलो होय सो अपने प्रमाणसू उपरान्त क्षेत्रका सामायिक काल पर्यंत त्यागे अरु काल जघन्य दोय घड़ी मध्य चार घड़ी उल्लष्ट छह घड़ी प्रमान करे, प्रभात एक घड़ीका तड़कानूं लेय एक घड़ी दिन चढ़े पर्यंत वा दोय घड़ीका तड़कातूं लेय दोय घड़ी दिन चढ़े पर्यंत वा तीन घड़ी दिन चढ़े पर्यंत जघन्न मध्य उत्कृष्ट सामायकका काल है । ही मध्यान समै एक घड़ीसू लगाय तीन घड़ी पर्यंत पूर्वक सोम भांत करें । अरु सांझ ममय एक घड़ी दिनसु एक घासत पर्यंत वा दोय घड़ी दिनमू दोय घड़ी रात पर्यंत ऐसे स मय करे या भांत तीन काल सामायक करे कालकी जेती प्रमिला लेनी होय तासू सिवाय सवाया टोटा अधिका काल वीते ही वहां अपना पन निश्चल होय तत्र सामायक नाम पावै बहुरिया विष आरौिद्र ध्यानने छोड़े धर्मध्यान वा शुक्ल ध्यानकू भावे ऐसे द्रव्य क्षेत्र काल भावकी शुद्धता जाननी बहुरि पद्मासन वा कायोत्सर्ग आसन राखे अंगने चलाचल न करे इत उत देखे नाही अंग संकोचे नांहीं घूमे नाहीं उँघे नाहीं उतावला बोले नाहीं ऐसे शब्द करे धीरा जो आपका शब्द आपही सुने और का शब्द आप रागभाव कर न सुने औरकू राग भाव सहित देखे नाहीं आंगुली