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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
wwwwwwe .......... प्रशाद कर तत्व अतत्वका स्वरूप प्रतिभासो। ज्ञान लोचन मेरे उघटे ताके सुखकी महिमा मोपे न कही जाय । तासू हे भगवानजी संसार संकटसे निकालनेको निःकारन परम वैद्य थे मोने अद्भुत दीखो हो तातें तुमारे चरनार बिन्दु सू बहुत अनुराग वतॆ है। सो भव भवके विर्षे पर्याय पर्यायके विर्षे एक तुमारा चरननकी सेवा ही पाउं जे पुरुष धन्य है जो तुमारे चरनाने सेवे हैं। तुमारे गुनाकी अनुमोदना करें हैं। तुमारे रूपने देखें हैं तुमरे गुनानुवाद गावें हैं। तुमरा वचनका नाम सुने हैं। मनविर्षे निश्चे धारे हैं। तुमारा चरन पूजें हैं। तुमारा ध्यान करें हैं। तुमारे गुनानुवाद गावें हैं तुमारा वचनका नाम सुने हैं। मनविर्षे निश्चै धारें हैं। तुमारा चरनाने अर्घ दे हैं तुमारी महमा भावे हैं । तुमारे चरना लताकी रज व गंधोदक मस्तकादि नाभि पर्यंत उत्तम अंग तामें लगावें हैं । तुमारे सन्मुख खड़े होय हस्तांजुली जोड़ नमस्कार करें हैं । अरु तुम ऊपर चमर ढोरे हैं ते पुरुष धन्य हैं । वाकी महमा इन्द्रादिक देव गावें । वे ही कृत कृत्य हैं वे ही पवित्र हैं। वाहीने मनुष्य जनम सफल किया । ताही ने भवविलांकू जला जल दिया बहुरि हे जिनेन्द्र देव हे कल्यानके पुंज हे त्रैलोकके तिलक अनंत महमा लाईक परम भट्टारक केवल ज्ञान केवल दर्शन ये जुगल नेत्रके धारक सर्वज्ञ वीतराग तुम जयवंत प्रवर्ती तुमारी महमा जयवंत प्रवर्ती तुमारा सासन जयवंत प्रवर्ती धन्य यह मेरी परजाइ में तुम सारचे अद्भुत पदार्थ पाये ताकी अद्भुत महिमा कौन कर सके अरु तुमही माता. तुमही पिता तुमही बंधव तुमही मित्र तुमही परम उपगारी तुमही, मैं