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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
ताहीका नाम मोक्ष है। बंध आश्रवतें छूटनेका नाम मोक्ष है । वा मुक्त है । वा हित है वा भिन्य कहो । अरु नर्क तिष्ठते जीव तिने मोक्ष की सिद्ध होतो तो सर्व सिद्धांकी अवगाहना विषे अनन्ते पाच थावर सूक्ष्म वादर बताइये है तो महा दुखी क्यों होते । तातें निरनै कर आपना ज्ञानानंद सुभाव धारया गया छे । वाहीका नाम बंध था सो ज्ञानावर्नादिक कर्म अभाव होतें सु
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रायमान हुआ जैसे सूर्जका प्रकाश वादर सूं रुक रहा था ) वादल के अभाव होते संपूर्ण प्रकास विगसाय मान होय त्यों ही कर्म पटल विगसे ते ज्ञान सूर्य विगसाय मान भया अरु ऊर्ध जाय तिष्टा सो जीवाका ऊर्द्ध गमन स्वभाव है तातें ऊर्ध गमन किया । अरु आगे धर्म द्रव्य नाहीं । तें धर्म द्रव्यके कारन विना आगे गमन किया । उहां ही तिष्टे सो अनंतकाल पर्यंत साता सुख रूप तीन लोकके नेत्र वा तीन काल लोकालोकके देखने रूप ये ज्ञान दर्शन नेत्र अनंत बल अनंत सुखके धारी सिद्ध महाराज तीन लोक कर तीन काल पर्यंत पूजित तिष्टसी सो हे भगवान ऐसा उपदेश भी तुमही दिया सो प्रभू इह उपगारकी महमा कहा तांई कहिये अरु कहा तुमारी भगत पूजा वंदना स्तुति करें। तातैं हम सर्व प्रकार करनेको असमर्थ हैं । अरु तुमतो परम दयाल हो तांतें मो पर क्षिमा करो । तासों हे भगवान मेतो और किछू समझता नाहीं । में तो महा अज्ञान महा मूर्ख अविवेकी तुमारी कहा भक्ति करें यह मेरे तांई बड़ी असंभव फिकर है। जो हम तुमारी स्तुति महमा करने लज्जायमान हों हैं । परन्तु कहा करें तुमारी भक्ति महा हठ पने कर जौवरी वाचाल करे है । सो तुमारे चरनारविंद विषे नम्री --
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