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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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ऐसा उपदेस भी तुम ही देते भये । बहुरि वेई सुईकी अनीका डागला ऊपर पूर्वे कहे जीव तीन लोकके लाया कर्म व अकर्भ रूप अनंता अनन्त गुनी प्रमान वा एक सुईकी अनीका डागला ऊपर आकास पाइये है। ता विर्षे अनन्तानंत प्रमान वापुली तिष्टें हैं । अनंता सखंध दो दो प्रमान वाका तिष्टे है। ऐसे है। एक एक परमानू अधिक अधिक स्कंध तीन परमानू वाका स्कंध सो लगाय अनंत परमानू वाका स्कंध पर्यंत अनंत जातके सकंध एक एक जातके स्कंध सो भी अनंत अनंत सुईका अग्र भागमें अनंत परजाय अनंत गुण अनंत अविभाग प्रतिछेद तीन काल सम्बंधी उत्पाद व्यय ध्रुवकी अवस्था सहित एक समयमें मिनेन्द्रदेव तुमही देखे अरु तुमही जाने अरु तुमही कहे। अरु या परमानू वाके परस्पर रुख सचिखन दूनाका दि वार्ता नाहीं। दो दो अंसांसू अधिकता ये संग कर सज्रबंध विषयबंध सुनातिबंध विनातिबंध ऐसे परमानू वाका परस्पर बंध । वा निः कारन रूख सचिकन अंसाका समूह ताकी परपाटी लियां बंधने कारन है । वा अकारनका स्वरूप भी तुमारे ज्ञान विषं झलके। अरु दिव्यध्वनि कर कहते भये सो हे जिनेन्द्रदेव तुमारा ज्ञान रूपी आरसी कैसी बड़ी है । ताकी महमा कहा लग कहिये । बहुरि हे भगवान हे कल्याननिध हे दयामूरत हम कहा करे प्रथम तो हमारे सरूप ही हमने दीसे नाहीं । अरु हमने दुःख देनेवारे दीसे नाहीं। अरु वाका कहा अपराध हम पूर्वं किया । ताकर हमारे ताई कर्म तीव्र दुःख देहें । अरु ये कर्म किसी भांत सों उपसांत होंय सो ही हमने दीसे नाहीं। अरु हमारा