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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
आवरन आवे नाहीं । जे आवरन आवे तो सर्व ज्ञान घात्या जाय । सर्व ज्ञान घातवा कर जड़ होय जाय सो होय नाहीं । सो वह पर्जाय ज्ञान विषे अविभाग प्रतिक्षेप पाइये है । तातें अनन्त वर्गना स्थान गुने जघन्य छायक सम्यक के अविभाग प्रतिछेद पाइये है । तातें अनन्त वर्गना स्थान गुने केवल ज्ञान केवल दर्शनका आविभाग प्रतिछेद पाइये है । सो ऐसा भी उपदेश तुम ही देते भये और भात उपदेस तुम दिया जो एक सुईकी अनीका डागला ऊपर असंख्यात लोक प्रमान अषध पाइये है। एक एक सखंद में असंख्यात लोक प्रमान अंडर पाइये है । एक एक अंडा विषे असंख्यात लोक प्रमान आवास पाइये है। एक एक आवामें असंख्यात लोकप्रमान पुलवी पाइये है । एक एक पुलवी विषे असंख्यात लोक प्रमान शरीर पाइये है । एक एक शरीर विषै अंतकालके समयासूं अनंतानन्त वर्ग स्थान गुन जीव नामा पदार्थ पाइये । एक एक जीवके अनन्त अनन्त कर्म चर्गना लागी है । एक वर्गना विषें अनन्त अनन्त परमान पाइये है । एक एक परमानूके साथ अक्रम निसर सो पचये जीव राससो अनंतानन्त गुनी प्रमान विषं अनन्त अनन्त गुण वा पर्याय पाइये है । एक एक गुन वा पर्यायका अनन्त अविभाग प्रतिछेद है । ऐसी विवित्रता एक सुईकी अनीका डागरा ऊपर निगोद रासके जीवा विषे पाइये है । सो ऐसे जीव ऐसो परमानू कर वेढ़त वा वर्गना कर अक्षादित जीवां तीन लोक घीका घड़ावत अतिसय कर पूर्न भरया है । सो एक निगोद शरीर माहिला जीव ताके अनन्तव 1 भाग भी निरंतर मोक्ष जाने कर तीन कालमें घटे नाहीं और
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