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ज्ञानानन्द श्रावकाचार । दिया अपूठा आपाने अनंत संसार विषै डुबोया अन्य घना जीवानै डुबोया ऐसा जान बुद्धिमान् पुरुषन कू सर्व कुपात्र कं दान तनना सुपात्र दान करना उचित है । ग्रहस्थके घरकी शोभा धनसू है । अरुधनकी शोभा दानसू है । अरुधन गईए है सो धर्म सो पाई ये हैं । धर्म विना एक कौड़ी पाइवौ दुर्लभ है। जे अपना पुरुषार्थ कर धनकी प्राप्त होय तौ पुरुषार्थ तौ सर्व जीव कर रहै हैं । ऐक ऐक जीबकै तृस्ना रूपी खाड़ा ऐसा दीर्घ उड़ा है । ताके विषै तीन लोककी सम्पदा पाई हुई परमानू मात्रसी दिखलाई दै हैं । सो ऐसा तृस्ना रूपी खाड़कौ सर्व ही जीव पूरया चाहैं हैं । परन्तु आज पर्यंत कोई जीवनै नाहीं पूरचा गया । तातै सत्पुरुष तृस्ना छोड़ि सन्तोषनै प्राप्त भया है
र त्याग वैराग्यनै प्राप्त होय है । ताहीका प्रसादकरि ज्ञानानंदमय निराकुलित शांति करि पुर्ण सूक्ष्म निल कवलज्ञान लक्ष्मीनै पावै है । अविनाशी अविकार सब दोष रहित परम सुखनै सदैव सास्वता अनंतकाल पर्यंत भोगवे है । ऐसा निर्लोभताका फल है तातै सर्वजीव निर्लोभ ताकौ सर्व प्रकार उपादेय जान भनौ, रूपनतानै दूर ही तै तननौ । आगै दुखित भुखितके दानका विशेष कहिये है । अंधा, बहरा, गूंगा, लूला पांगुला वा सकल वृद्धि स्त्री रोगी घायल क्षुधाकरि पीड़ित शीतकी बाधा करि पीड़ित वंदीवान तियच व्या व्यावर स्त्री कुंकरी विलाई गाय भैंस घोडी आदि जाका कोइ रक्षक सहाइक खाविंद नाहीं। ऐ पूर्व कहे मनुष्य तिर्यच ते सर्वदा अनाथ पराधीन हैं । अर गरीब हैं दुखित है, दुखकरि महाकष्टनै सहैं हैं । अरु विलविलाट करें