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ज्ञानानन्द श्रावकाचार |
काय कर। कृत अनुमोदना काय कर। कृत अनुमोदना मन वचन कर | कारित अनुमोदना मन काय कर कारित अनुमोदना वचन काय कर | कारित अनुमोदना मन वचन काय कर। कृतकारित अनुमोदना मन वचन काय कर। ऐसे ये गुणचास भाग जानना । सो ईक भयनो ईक भयनोके भाग । ईक भैनो दो मैनोके भाग । ईक भैनो तिनो के भाग । दुभैनो ईक मैनोके भाग । दुभैनो दुभैनोका भाग । दुमैनो तिभैनोका भाग । ईक मैनोका भाग । तिभैनो दुभैनोका भाग । ई तिभौनो तिभोनोका भाग। ए गुनचास भागकी संज्ञा जाननी होय । एवं गुनचास अरु तीन काल सेती गिन्या एक्सै सैतालीस भाग संपूर्ण ।
आगे षोडस भावनाका स्वरूप कहिए है। दरसन विशुद्धी कहिये दर्शन नाम श्रद्धानका है । सो सरधानका निह विवहार त्रिषै पच्चीस मल दोष रहित समकितकी निर्मलता होय ताको नाम दर्शन विशुद्धी कहिये | देवगुरू धर्मका वा आप सो गुनकर अधिक धर्मात्मा पुरनका विनय करिये ताका नाम विनय संपन्नता कहिए । शील अरु वृत ता विषे अतीचार लगावे नाहीं । ताको शील वृत अनतीचार कहिये । मुन्याके तो पांच महावृत हैं अवशेष मूल तेईस शील है । अर श्रावकके बारा वृत तामें पांच अनुवृत तो वृत हैं। ओर अवशेष सात शील है ऐसा अर्थ जानना । निरंतर ज्ञानभ्यास हो वाको अभीक्षन ज्ञानोपयोग कहिये । धर्मानुराग होय ताको संवेग कहिये । अपनी सक्त के अनुसार त्याग करिये arat नाम कति त्याग कहिए। अपनी सक्त के अनुसार त्याग करिये ताको सक्तिस तप कहिये | निकषाय मरन करिये ताको