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ज्ञानानन्द श्रावकाचार |
अपेक्षा लगाइये वा त्रेपन भाव गुनस्थानके चढ़ने उतरनेको गैल इत्यादि । नाना प्रकार के उत्तरोत्तर तत्वका विशेष स्वरूप ज्यों ज्यों घना घना भेद भेद निमित नैमित्य आधार आधेय निश्चे विवहार हेय उपादेय इत्यादि ज्ञान विषै विशेष अवलोकन होय । त्यों त्यों सरधान निर्मल होइ । याहीको छायक सम्यक्तका घाताका काम तो सातवां गुनस्थान ही हुआ सो बारवां गुनस्थान पर्यंत तो क्षायक सम्यक्त ही नाम पाया । अरु केवल सिद्धोंके परम क्षायक सम्यक्त नाम पाया । तातैं सत्यक्तकी निर्मलता होनेको ज्ञान कारन है । तातैं तासों स सर्व विषै ज्ञान गुन ही ऐसा प्रश्न करे सप्त तत्व ही का कहा । और प्रकार क्यों न कहा ताका उत्तर कहिये है । जैसे कोई रोगी पुरुषको रोगकी निर्वृतिके अर्थ कोई स्याना वैद्य चिन्ह देखे सो प्रथम तो ऊ रोगीकी चाप देष पीछे रोगको निश्चे करें । पीछे यह रोग कौन कारन ते भया सो जानें। अरु कौन कारनसों रोग मिटे ताका उपाय विचार अरु रोग अनुक्रम सो कैसे घटे ताका उपाय जाने अरु इस रोगसों कैसा दुषी है । रोग गये कैसा सुखी होयगा । जैसे पूर्वे निज स्वभाव याका या तेंसाही मोकों रोगसों रहित कर देगा । ऐसे सानुत्रातके जाननहारे वैद्य होंय ताही सो रोग जाय अजान वैद्यसों रोग जाय नाहीं । अजान वैद्य जम समान है । तैसें ही आश्रवादि सदा तत्वका जानपना संभवै सो ही कहिये है । सो सर्व जीव सुखी हुवा चाहे हैं । सो संपूर्न सुखका कारन मोक्ष है । तातें मोक्ष ज्ञान
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वधावना ।
ज्ञान ही प्रधान है । प्रधान है । इहां कोई सरधान करनेको मोक्षमार्ग