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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
१५७ विचार नाहीं ऐसा जाने नाहीं के यह वा अन्य जीव कह अवस्थामें वा सर्व पूर्व अनन्त वेर भोगी है । अरु धर्म विना बहुरि भोगेगा। यह पर्याय छूटा पाछे । धर्म विना नीच पर्याय ही पावना होयगी । तातै गाफल न रह, नाहीं तो गाफल बहु दगा खाय है। मारा जाय दुःख पावे है और वैरी वस परे छे इत्यादि विचार कर सम्यकज्ञान सम्यकचारित्र रत्नत्रय धर्म पर्म निधान है सर्वोत्कृष्ट उपाध्येय जान महा दुर्लभ याकी प्राप्ति जान जिह तिहि प्रकार रत्नत्रय धर्मका सेवन करना । ऐसे दुर्लभ भावना सम्पूर्ण । इति वारानुपेक्षा स्वरूप वर्णन सम्पूर्ण । -
___ आगे बारा प्रकार तपका स्वरूप कहिये है तप अनसन कहिये इनका अर्थ चार प्रकार, असन । पान । खादि । स्वादि । असन नाम पेटभर खानेका है। पान नाम जलदुग्धादि पीवनेका है । खादि नाम सोपाड़ीका है। स्वाद नाम मुखसोदिका. है। यह चार जिह्वा इन्द्रीका भी विषय जानना और इन्द्रियनका नाहीं और इन्द्रीनका विर्षे और है । बहुरि आमोदर्य कहिये क्षुधा निवृत्य विवे एक ग्रास घाट दोय ग्रास घाट आदि घटिता घटिता एक ग्राम पर्यंत भोजनकी पूर्णता विष ऊन भोजन करे ताको ऊनोदर तप कहिये । आज इहि बिध भोजन मिले तो लेनी । नाहीं मिले तो हमारे आहार पानीका त्याग है । ऐसी अटपटी प्रतिज्ञा करे । मन बोले वाके अर्थि आदि छहों रस पर्यंतका त्याग है ताको रस परित्याग कहिये ।' बहुरि आराम प्रमुख छोड़िये कथनका विषं जाय बैठे ताको विविसन कहिये । बहुरि सीत काल विर्षे नदी तलाव चौपटा