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NARANA
ज्ञानानन्द श्रावकाचार । जोड़ता हाथ पवित्र भया अरु तुमारा रूप अवलोकन करता नेत्र पवित्र भया । तुमारे गुनकी महमा वा स्तुति करता जिह्वा पवित्र भई । अरु तुमारे गुननकी पंकति सुमरन करता मन पवित्र भया । तुमारे गुनानुवाद श्रवन करता श्रवन पवित्र भया । तुमारे गुननका अनमोदना कर मन पवित्र भया । तुमारे चरननकू अष्टांग नमस्कार करता सर्वांग पवित्र भया । हो जिनेन्द्रदेव धन्य आजकी घड़ी धन्य आजका दिन धन्य आनका मास वा संवत्सर सो या कालमें दर्शन करनेकू सन्मुख भया । हे परमेश्वरजी मेरे आपका दर्सन करता ऐसा आनन्द भया मानू निधि पाई। चिन्तामन रत्न पाया वा कामधेन वा चित्रावेल घरमें आई । मानू कल्प वृक्ष मेरे द्वारे भया । वा पारसकी प्राप्ति हुई । सम्यक रतन तो मेरे सहन ही उत्पन्न भया । सो ऐसे सुखकी महमा मैं कौन कहों । अहो भगवानजी तुमारे गुनकी महमा करता जिह्वा त्रप्ति होय नाहीं। तुम्हारे गुन अनमोदना करता मन त्रप्ति होय नाहीं । अरु तुमारे रूपको अवलोकन करता नेत्र त्रप्ति होंय नाहीं । हे भगवाननी मेरे ऐसा उत्कृष्ट पुन्य उदय आया अरु ऐसी काल लब्धि आय प्राप्त भई जाके निमित्तकर सर्वोत्कृष्ट त्रैलोक्यं पूज्य सो आज ऐसे देव पाये । सो धन्य मेरा मनुष्य भव सो आपके दर्शनकर सफल भया । पूर्वं अनन्त पर्याय तुमारे दर्शन विना विफल गये । अहो प्रभूजी तुम पूर्वं तीन लोक पूज्य पवित्र नव तू छोड़ संसार देहसू विरक्त होय भो भगवान भोग भाव असार जान मोक्ष उपादेय मान स्वमेव अहंती दिक्षा धरी । ततकाल ही मन पर्यय ग्यान भया। पीछे शीघ्र ही केवल ज्ञान सूर्यका-निरावर्न