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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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आनंदरस है। ताके एक अंस मात्र भी आनंदका निर्मापन ताकर जानके देव तिनके शरीर उत्पन्न भये हैं । इत्यादिक तुम्हारे शरीरकी महमा कहने समर्थ त्रिलोकमें कोई नाहीं। लाड़ला पुत्र माता पिताकू चाहे त्यों बोले पीछे माता पिता वापे बालग जानकर वासू प्रीति ही करे । अरु मन वंक्षित मिष्ट वस्तु वान खावा मगाय देय । तासू हे भगवान तुम हमारे उधित माता पिता हो। अरु में लघु पुत्र हों सो लघु बालक जान मोपर क्षिमा करिये। हे प्रभूजी तुम समान मेरे और वल्लभ नाहीं । अरु हे भगवानजी मोक्ष लक्षमीके कंथ थें ही हो । अरु जगतका उधारक थेई हीं अर भव्य जीवाने उद्धारवां समर्थ थेई हो। तुमारे चरनारबिन्दको सेय सेय अनेक जीव तिरे और तिरेंगे अरु तिरे हैं । अहो भगवान दुख दूर करने थेई समर्थ हो । अरु हे भगवान हे प्रभू हे जिनेन्द्र तुम्हारी महमा अगम्य है । अरु हे भगवान समोसरन लक्ष्मीसू विरक्त थेई हो । कामवानके विध्वंसक थेई हो। मोह मल्लको जीतवाने अभूत मल्ल हो । अरु जरा वा मरनसू रहित होइ कालरूप दानाका जपने तुम ही प्राप्त भया हो। काल निर्दई अनाद कालको त्रिलोकका जीवाने निगलतो निपात करतो सो जाका निवारवाने कोई समर्थ नाहीं समस्त त्रैलोक्यके जीव कालका गालमें वसे है । तिनकू निर्भे वो दातातें चगल चगल नगलै है। खोभी त्रिप्त नाहीं होय । ताकी दुष्टता अरु प्रलबताने जीतवा कोई समर्थ नाहीं ताको तुम छिन मात्रमें जीता सो हे भगवान तुमकू हमारा नमस्कार होहु । बहुरि हे भगवाननी तुमारे चरनक सन्मुख आवता मेरा पग पवित्र भया अर तुम आगे हस्त