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ज्ञानानन्द श्रावकाचार |
जान ले । बहुरि विव्यक्त सैयासन काय क्लेस येक कर अत्यंत अतसेवंत महा दैदीप तेज प्रताप संयुक्त इन्द्र चक्रवर्त कामदेव वा महत पुरुषका शरीर पावै है । यह तो बाह्य प्रकार घटू तप तिन विषं प्रायश्चितका फल है । बाह्यके तप कर तो शरीर दया जाये है । अरु शरीर दम्याकर किंचित् मन दमा जाय है । ताही भीत नाम पावे है । अरु मन नाहीं दम्या जाय तो एकः शरीरको दुव्यां तप नाम पावे नाहीं । धर्मात्मा पुरुष एक मनकी बुद्धि ताके अर्थ वहरंग तप करे हैं । अरु आनमती शरीर में तो घनों ही कसो है । पुन मन अंस मात्र दम्या जाय नाहीं । तातें वाको असमात्र भी ता न कहा । अरु अभ्यंतर के तप कर मन दम्या जाय है । मनके दमवाकर कपायरूपी पर्वत गले है । ज्यों ज्यों कर्माकी हीनता विषेश जान तपकर होय है । त्योंही तपका फल विशेष जानना । जिन धर्म विषे कर्माकी मंदता सो ही परनामाकी विशुद्वता ताहीका नाम तप है धर्म है । वे ही मोक्ष मार्ग है वो ही कर्मा बालवाने ध्यानानि छे संपूर्न सर्व सास्त्रांका रहस्य कर मोह कर्मके मंद पाड़नेका वास्ता नास करने का है । और जेता संयम ध्यानाध्ययन ज्ञान वैराज्ञ आदि अनेक कारन बताये हैं । सो एक रागादिक भावां सो वधे हैं । अरु वीतराग भावांकर खुले हैं। तातें सर्व प्रकार तीन काल तीन लोक विवें एक वीतराग भाव है सोई मोक्ष मार्ग है। सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्रको मोक्ष मार्ग कहा है । सो यह वीतराग भावांने कारन है तातें कारनके विषे कार्यको उपचार कहा है । कारन विना कार्यकी सिद्धि होय नाहीं । तातें कारन प्रधान है सो प्रतक्ष यह बात अनुभव में