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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
विषे मन विषेश लगे है । यातें अनन्त गुनाफल स्वाध्याय तपका है । या विषे च्यारू कषाय मोह सहित विषेश गले है । अरु पाचों इन्द्री वस होय हैं । मन वस होय है । चित्तकी एकाग्रता 1 होय है सोही ध्यान है । ध्यानसों मोक्ष विशेष है । संम्यकदर्शन ज्ञान चारित्र निर्मल होय है । अरु पुन्यका संचय अतिशय सहित होय है । जेता धर्मका अंग है ते सर्व ज्ञान चारित्र निर्मल होय है । अरु पुन्यका संचय अतिशय सहित होय है । तेता धर्मका अंग है ते सर्व ज्ञानभ्यास ते जान्या जाय है । तातें सर्व धर्मका मूल एक सास्त्रभ्यास है । याका फल केवल ज्ञान है । बहुरि स्वाध्याय ने व्युतसर्ग अरु ध्यान चाका फल भी अनंतानंत गुना है । याका फल मुख्यपने एक. मोक्ष ही है । बहुरि बाह्य तप कहें हैं सो भी कषाय घटावनाके अर्थ कहें हैं । कषाय सहित बड़ा तप करे तो वह तप संसारका ही बीज है । मोक्षका बीज नाहीं ताहीं ते अज्ञान तप कहा है । सो ही आन मतमें है । जिन मतमें नाहीं । ऐसे वारा प्रकारके तप ताके फल जानना । अगे तपका फल विशेष कहिये है । सो देखो आनमत बारे वा तिथंच मंद मंद कषाय के महात्म कर सोलवा स्वर्ग पर्यंत जय हैं। तो जिन धर्मके सरधानी कर्म काट मोक्षको न जाय । तातें तप कर कर्मोका निर्जरा विशेष होय है । सो ही दस सूत्र विषें कहा है । तपतें निर्जरा तातें अवश्य आभ्यंतर वा बाह्य बारा प्रकारके तप तिनको अंगीकार करना । तप विना कदाचि कर्म करें नाहीं । ऐसा तात्पर्य जानना । एवं संपूर्न / आगे बार प्रकार संयम कहिये
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