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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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ही रंग चढ़े । विना कषायला किया वस्तर दीर्घकाल पर्यंत रंगके समूहमें भीगा रहे तो भी वाके रंग लागे नाहीं। ऊपर ऊपर ही दीस्या करे । वा वस्त्रको पानीमें धोइये तो रंगत उतर जाय । कषायला किया वस्त्र रंग्या हुआ ता रंग कोई प्रकार उतरे नाहीं । त्यों ही सम्यक दृष्टिके कषाय कर रहित जीवका प्रनाम है । ताके दीर्घ काल पर्यंत परिग्रहके भारमे रहें तो भी कर्म मल लागे नाहीं। यह मिथ्या दृष्टिके कषायकर प्रनाम कषायला है । तातें कर्माकर सदीव लिषत होय है । बहुरि साह गुमस्ता माता धाय बालकको एकसा पलावे एकसा लाडपाल करे । परन्तु अंतरंग विर्षे राग भावाका विषेश पड़त है । त्योंही सम्थकदृष्टि मिथ्या दृष्टिके अंतरंग भावाका अल्प बहुत्व विषेश जानना तातें वीतराग भावा सहित सावध योगका त्याग सोही सम्यक चारित्र जानना । इति चारित्र कथन संपून । आगे वारा अनुपेक्षाका स्वरूप कहिये है । बारा नाम बारहका है अनुपेक्षा नाम चितवन करनेका है । सो इहां बारा प्रकार वस्तुका स्वरूप निरंतर विचारना और नाहींके वारयांका स्वरूप जान स्थित होइ पर हरना । भावार्थ । यह जीव भृम बुद्धिकर अनादि कालसे वारा स्थान विर्षे आसक्त हुआ है । तात याकी आसक्तता छुड़ावनेके अर्थ परम वीतराग गुरू यह बारा प्रकार भावना याके आसक्तता सुभावसू विरुद्ध दिखाय छुटाया है। जैसे मदवा हस्ती सुछंद हुआ जहां जहां स्थानक विषे अटके । अपना वा. विराना हिमार बहुत करे ताकों चरषा वा भालावारे सांट मार बहुत हस्तीको बहुत मार देय छुड़ावै हैं। सोई कहिये