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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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दर्शन कहिये । तत्व नाम वस्तूके भावका है । अरु अर्थ नाम पदार्थका है सो पदार्थ तो आधार है अरु तत्व आध्येय है । सो यहां मोक्ष होनेका प्रयोजन है । सो मोक्षने कारन मोक्ष मार्ग जो रत्नत्रय धर्म है। सो प्रथम सम्यक दर्शन कारण तत्वार्थ सरधान है। सो तत्व सप्त प्रकार हैं । जीव । अजीव । आश्रव । बंध | संवर । निर्जरा । बंध | मोक्ष । यामें पाप पुन्य मिलाये यहीका नाम नक पदार्थ है । सो तत्व कहो भावे पदार्थ कहो । सो सामान्य भेद कहे त्याको तो सप्त तत्वां कहा अरु विशेष भेद कहे ताको नव पदार्थ कहे । याका मूल आधार जीव अजीव दोय पदार्थ हैं अरु जीव तो एक ही प्रकार है अजीव पांच प्रकार है । गल | धर्म । अधर्म । आकास । काल । याहीकूं षट् द्रव्य कहिये । काल विना पंचास्तिकाय कहिये । याही ते सप्त तत्व नव पदार्थ षट द्रव्य पंचास्तिकाय याका स्वरूप विशेष जान्या चाहिये । सो याका
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भेदाभेद करिये ताको भेद कहिये । अरु याका विशेष ज्ञान ताको विज्ञान कहिये । दोनोंका समुदायको भेद विज्ञान कहिये । याही ते सम्यक दर्शन होने को भेद विज्ञान जिन वचन विषे कारन कहा है । तातें विज्ञानकी वृद्धि सर्व भव्य जीवने कारन उचित है । तिने मूल कारन जिन वानी कर कहा जैन सिद्धान्त ग्रन्थ ताका. मुष्य पहली अवलोकन करनो । जेता सम्यक चारित्र आदि और उत्तरोत्तर धर्म हैं । ताको सिद्ध एक सिद्धान्त ग्रन्थके अवलोकनतें ही है । तातें वाचन प्रक्षना । अनुपेक्षा । आमनाय । धर्मोपदेस । ये पांच प्रकार के स्वाध्याय निरंतर करना याका अर्थ बांचना सास्त्रका वांचनेका है । प्रक्षना नाम प्रश्न करवेका है ।
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