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ज्ञानानन्द श्रावकाचार । ..
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परभवके भोगनकी अभिलाषा ५, ऐसे सब मिल सत्तर अतीचार भये, तिनका त्याग करना । आगै सामायिकका बत्तीस दोष कहै है । अनादृत्त कहिये निरादरसौ सामायिक करै १, पर जीवने पीड़ा उपजावे अर्थ सामायिक करै २, प्रतिष्ठा कहिये मान बड़ाई महिमाके वास्ते सामायिक करै ३, अरु पीड़ित कहिये परिजीवनै पीड़ा उपनावै ४, दोलापति कहिये हं दीवालाकीसी नाई सामायिक विषै हालै ५, अंकुश कहिये अंकुश कीसी नाई सामायिक वक्रता लिये करै ६ कछुपरित्यागका कछुवाकी नाई शरीर संकोच करि सामायिक करै ७, मत्सोदन वर्तन कहिये मामला कैसी नाईं नीचौ ऊचौ होई ८, मनोदुष्ट कहिये मन दुष्टता राखै ९, वेदका बंध कहिये आम्नाय बाह्य १०, भय कहिये भय संयुक्त सामायिक करै ११, विभस्त कहिये गिलान सहित सामायिक करै १२, ऋद्धि गौर कहिये रिद्धि गौरव मनसै राखै १३, गौरव कहिये जाति कुलकौ गर्व राखै १४ स्तेन कहिये चोरकीनी नाई करै १५ व्यतीत कहिये व्यतकाल १६, प्रदुष्ट कहिये अत्यंत दुष्टतासौ कहै १७, तपित कहिये पैलनै भय उपजावै १८, शब्द कहिये सामायिकमैं सावध कार्य लिया बोलै १९, हीलति कहिये परकी निंदा करें २०, तृवली कहिये मस्तककी त्रवली भौंह चढ़ाई सामायिक करै २१, कुंचित कहिये मनके विषै संकुच्या सामायिक करें २२, दिगविलोडन कहिये दशों दिशामाहीं अबलोकन करै २३, अदिष्ट कहिये जागा विना देख्यां विनां पौछै करै २४, संयम करि मोचन कहिये जैसे काहीको लहनौ दैनौ होई सो जिहितिहि प्रकार पूरौ पाड़नौ चाहै त्यौही दैनै कैसी नाई जिहितिहि प्रकार सामायिकको काल पूरौ