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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
कियौ चाहै २५, लब्ध कहिये सामायिककी सामग्री लंगोटी पीछी वा क्षेत्रकी जोगाई मिले तो करें नहीं तो आधोकर जाय २६, अलब्ध कहिये न लब्धी २७, हिन कहिये सामायिकका पाठ है। सो हीन पड़े अथवा सामायिककौ काल पूरौ हुवा ही विना उठबैठा होय २८, उचूलिका कहिये खंडित पाठ कहै २९, मूक कहिये गूंगा कैसे नाई बोले ३०, दादुर कहिये मीढककी नांई सुरनै लीया बोले ३१, चलुनित कहिये चित्तको चलाईव ३२, ऐसे सामायिक बत्तीस दोष जानना । आगै सामायिक विषै सात शुद्धि राख सामायिक करै ताका ब्योरा । क्षेत्र शुद्धि ऐ जेठे मनुप्याकौ कलकलाट शब्द घना न होय अरु डास मच्छर न होय. और नौ पवन वा घनी गरमी वा घनौ शीत न होई १, काल शुद्धि कहिये प्रातःकाल वा मध्यानकाल वा सांझकाल सामायिककौ काल छै उलंघै नांही । जघन्य दोय घड़ी मध्यम चार घड़ी उत्कृष्ट छह घड़ी सामायिककौ काल छै । सो दोय घड़ीकी करनी होय तौ घड़ीका तड़का सूं लगाई घड़ी दिन चड़ा पर्यंत । चार घड़ीकी करनी होय तौ दो घड़ीका तड़का लगाई दोय घड़ी दिन चड़ा पर्यंत छह घड़ीकी करनी होय तौ तीन घड़ीका तड़का लगा तीन घड़ी दिन चड़ा पर्यंत ई कालकी आदि विषै सामायिककी प्रतिज्ञा करें । प्रतिज्ञा सिवाइ काल लगावै नाहीं । ऐसे ही मध्यान समै विषै जानना २, आसन शुद्धि कहिये पद्मासन वा कायोत्सर्गासनसौ सामायिक करै ३, अरु आसनकूं चलायमानं न करै विनय शुद्धि कहिये देव गुरु धर्म्मको वा दर्शन ज्ञान चारित्रताकौ विनय लिया करें मन शुद्धि कहिये राग द्वेष रहित मनकूं राखे ५ वचन