________________
ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
१२१.
अवस्था विषै महला आभूषण पहरया, भावना भावता केवलज्ञान उपज्यौ ॥२९॥ महावीर जन्म कल्याणिक विषै बाल अवस्था विषे ही पगके अंगुष्टा सौ सुमेरु कंपायमान कियो ॥३०॥ पांच पंडवाकी द्रौपदी स्त्री पंच भरतारी शीलवंती महासती हुई ॥३१॥ कूवडया चेलाकै कांधे गुरु चढ़ा । और गुरू यों याका दंड किया की चेलाकै माथामें देते जाय । तब चेले छमाय तब छिमाके प्रभाव करि चेलाको केवलज्ञान उपज्यां तब चेला सूधागमन करने लगा। तबै गुरा फुरमाय कोई चेलां सूधा गमन करनै लागा । सो तौनें केवलज्ञान उपज्या तब चेलै कही गुराके प्रशाद ॥३२॥ अरु नै माली जातको माली सो महावीर तीर्थकरकी बेटी परन्यौ ॥३३॥ कपल नारायणनें केवलज्ञान उपज्यौ तब कपिलनारायण नाच्यौं थातकी खंडको यह आयौ छै ॥३४॥ बसुदेवकै बहत्तर हजार स्त्री हुई॥३५॥ मुनीश्वर स्पर्श सूद्रके घर आहार लेय अर कोई मांसादिक वैराया होय तौ साधु ऐसा विचार करै सो साधकी वृत्ति तौ ये है । बहरावै सोई लैना अरु दिभाया पीछे परथी उपरै खैपिय तो वह जीवकी हिंसा होय । तातें भक्षण ही करना उचित है पीछे गुरु खैपाका दंड प्रायश्चित ले लेंगे।॥३६॥, देवता मनुष्यनिसो भोग करें सो सुलसा श्रावकनीकें देवसौ वेटौ हुवौ ॥३७॥चक्रवर्तीकै छह हजार स्त्री हुई ॥३८॥ त्रिपिष्टनारायण छीपाकी कुल विषै उपज्यौ ॥३९॥ बाहुबलकौ सवापांचसै धनुष शरीर उतंग नहीं मानें घटि मानै ॥४०॥ अनार्य देश विष बर्द्धमान विहार करम कियौ ॥ ४१ ॥ चौथे अरु असंजमीको जति पूनै ॥४२॥ देवकों एक कोस मनुष्यको चार कोसा बराबर