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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
मतकी उत्पत्ति कही। अरु ताका कामरूप कहा। आगे स्त्रीके सिखाये विना सहन सुभाव होय है। ताका स्वरूप विशेष कर कहिये है। मोहकी मूरत है। काम विकार कर आभूषत है। सोक मंदिर है। धीरजता कर रहित है ! कायरता कर सहित है । साहस कर निवर्ती है। भयकर भीत है। माया कर हिरदा मैला है। मिथ्यात अरु अज्ञानका घर है। अदया, झूठा, असुच अंग, चपल अंग वा चपल नेत्र अरु अविवेक, कलह, निश्वास, रुदन क्रोध, माया, क्रपनता, हास, गिलानता, ममत्व, अदेसकपनो, अटीमर बुद्धि, बिसर्म, पीवकास्थानक है निगोद, वा क्रम, वा लट, ए सन्मूक्षन निमेष आपि त्रस थावर जीवनकी उत्पत्तिकी कोथली वा जोनीके स्थानक है कोईकी अच्छी वा बुरी बात सुना पीछे हृदै विषे राषवाने असमर्थ है । साली मोली बात करवाने परवीन है विकथाके सुनवाने अति आसक्त है। भाड़ विकथा बोलवेको अति अषता है। घरके षट कारज करवे विर्षे चतुर है। पूर्व परि विचार कर रहित है । पराधीन है। गाली गीत गावनेकी बड़ी बकता है। कुदेवादिकके रात जगावनेको सीत कालादि विषे परीसह सहवाने अति सूरवीर है। गरव कर सारो घर सारो ग्रहवाराके मारने धरवा है। वा भारवाने समर्थ है। पुत्र पौत्रादि ममत्व करनेको बांदरी साढस्य है। धर्म रतनके खोसवाने बड़ी लुटेर है। वा धर्म रतनके चोरवाने परवीन चोरटी है। नरकादि नीच गतिको लेजानेको सहकारी डलाव छै मोक्ष स्वर्गकी आगल है। हाव भाव कटाक्ष कर पुरुषके मन अरु नेत्र बाधनेको पास है। ब्रह्मा विस्नु महेश इन्द्र धरनेन्द्र चक्रवर्त सिंह हस्ती आदि बड़े बड़े तिनको जोड़ा