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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
लब पोषवेके अर्थ रच्या है । बहुर कैई कहे हैं स्त्रीकों मोक्ष नाहीं तो नवां गुनस्थान पर्यंत तीनों वेदका उदे कैसे कहा। ताका उत्तर यह जो ये कथन भाव अपेक्षा है । सो भाव तो मोहकर्मका उदयसू होय है । अरु द्रव्यां पुरुष स्त्री नपुंसकका चिन्ह नाम कर्मके उदयसे होय है । सो भाव तीनों वेदावारेने तो मोक्ष हम भी माने हैं । द्रव्यां स्त्री नपुंसककों मोक्ष नाहीं । वाकी समर्थता पंचमा गुनस्थान पर्यंत चढ़नेका है । आगे नाहीं यह नेम है। आगे एक द्रव्यां पुरुषको ही मोक्ष है । सो एकेन्द्री आदि असेनी पर्यंत अरु वा संमूर्छन पंचेन्द्री वा नारकी जुगल्यां य.के तो जैसो द्रव्यां चिन्ह है तैसा ही भावावेद पाइये है । अरु सैनी गर्भज पंचेन्द्री मनुष्य वा तिर्यचके द्रव्यां माफिक भाववेद होय । वा अन वेदका भी उदय होय । यह गोमट्टसारजी विषे कहा है। जैसे उदाहरण कहिये, द्रव्यां तो पुरुष है । अरु बाके पुरुषसूं भोग करने की अभिलाषा वर्ते ताका तो भावां स्त्री वेदी द्रव्यां पुरुषवेदी कहिये । अरु एकै काल पुरुष स्त्री भोग करनेकी अभिलासा होय ताका भाव नपुंसक वेद कहिये । अरु द्रव्यां स्त्री पुरुष भोगनेकी अभिलासा वर्ते ताको भाव पुरुष वेदी अरु द्रव्या वेदी कहिये । ऐसे द्रव्या पुरुष भाव तीन वेदवारे जीवकों मोक्ष होइ है । ऐसे ही तीन वेदका उदय द्रव्या स्त्री व नपुंसकके जानना। ताको पंचमा गुनस्थान तक आगे होय नाहीं। ताको ये मोक्ष माने है। ताका विरुद्धपन है। बहुरि दिगम्बर धर्म विषे वा श्वेताम्बर धर्म विषे ऐसा कहा है। अब सम्यक्तमे उत्कृष्ट एकसो आठ जीव मोक्ष जाय । अड़तालीस पुरुष वेदी बत्रीस स्त्री वेदी अठाईस नपुंसक