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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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प्रथम गुणस्थानतें लगाय तेरमा गुणस्थानके अंत समय पर्यंत आयु सहित आठवां आयु विना सातवां मोह बिना: । या साता वेदनी एक करमका ग्रहण करै है। ऐसे षट प्रकारके आहारका स्वरूप जानना । तातें केवलीके कवलाहार संभवै नाहीं अर जे पूर्वापर विकल्प कर रहित हैं ते मानें हैं । स्वेतांबर मत विषै भी आहार संज्ञा छटां गुणस्थान पर्यंत ही कही है। मोहका माता अहंकारका पक्षनै लिये वाका बिचार ही करै नाहीं। यह आहार कैसा है ऐसा बिचार उपजे नाहीं सो यह न्याय ही है । अपनै औगुण ढाकनैं होय तब आपसूं गुनकर अधिक होय ताकौ औगुण पहली स्थानपै । तैसे सर्व अन्यमत्यां आपने विषयभोग सेवनै आया । तब परमेश्वरकै भी विषयभोग लगाय दिया । त्योंही श्वेतांबर अपने एक दिन विपें बहुत बेर तिर्यचकी नाईं आहार करता आया तातें केवलीके भी आहार स्थाप्या सो धिक्कार होहु । राग भावांकै ताई अपनै मतलबके वास्तै ऐसे निरदोष परम केवली भगवान ताकौ दोष लगावै है । ताके पापकी बात हम नाहीं जाने कैसे पाप उपनै सो ज्ञानगम्य ही है। बहुर केवलीको रोग। केवलीकै निहार । केवलीकों केवली नमस्कार करै । केवलीको उपसर्ग प्रतमाकै भूषण ६ । अरु तीर्थकर स्तुति पढ़े ७ । तीर्थंकर पहली देसना अहली जाय ८ । महावीर तीर्थकर देवानंदी ब्रह्मानीकै घर अवतार लियौ पाछै इन्द्र वाका गर्भ में काढ़ त्रसलादे रानीके गर्भ विष जाय मेला पीछे वाके गर्भथकी जन्म लियो ९ । आदनाथ भाई सुनन्दा बहन जुमलिया १० । सुनन्दा बहनको आदनाथ परनी ११ । केवलीकों छींक आवै १२ । सुदकर ब्राह्मण