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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
रेतको पेर तेलकी अभिलाखा करै हैं । वा अग्निके विषै कमलका बीन बोय वाकी शीतल छायामें बैठ आराम किया चाहै है । इत्यादि विरोध कार्य किये फलकी निष्पत्ति, होय नाहीं भ्रम बुद्धि कर मानिये तो म्हां कष्ट ही उपनै । ऐसा प्रयोजन जानना। आगे श्वेतांबर दिगंबर धर्मसों विरोध चौरासी अछेरा मान है। तिनका नाम व स्वरूप वर्णन करिये है। केवलीकै केवलाहार मानै ऐसा विचार करै नाहीं । संसार विषै क्षुधा उपरांत और तीब्र रोग नाहीं अरु तीब दुःख नाहीं अरु जाकै तीब दुख पाइये तो परमेश्वर काहेका संसारी सादृश्य ही हुवे तो अनंत सुखपना कैसे संभवै । अरु छयालीस दोष बत्तीस अंतराय रहित निर्दोष आहार कैसे मिलै । केवली तौ सर्वज्ञ है सो केवली. तौ दोषीक निरदोषीक वस्तु सर्व दीसै । अरु त्रिलोक हिंस्यादि सर्व दोष मई भर रहै है। तौ ऐसे दोषको जानता सुनता केवली होय .दोषीक आहार कैसे करै मनु महाराज भी सदोष अहार न करै तो सर्व मुन्यां कर सेवनीक त्रलोकनाथ इक्ष्या विना सदोष अहार कैसे लहे । अरु एक अहार पीछे क्षुधा १ त्रषा १ रोग १ दोष १ जन्म जरा १ मरण १ शोक ' भय १ विष्मय १ निद्रा १ खेद १ स्वेद १ -मद १ मोह १ अरति १ चिंता १ ए अठारा दोष उपजे तौ ऐसे अठारा दोषके धारक परमेश्वर अन्यमती साद्रश्य परमेश्वर होय गये । अरु यहां कोई प्रश्न करै तेरहां गुणास्थांन पर्यंत आहार अनाहार दोनों कहा है। सो कैसे ताका उत्तर यह जो आहार छै प्रकारका है। कवल १ मानसीक २ ओझ ३ लेय ४ कर्म ५ नोकर्म ६ । ताकौ अर्थ लिखये है सो कवल नाम मुखमें ग्रास