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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
सर्व भ्रष्ट भये सो अब धर्म किसके आसरे रहै । तातें अपने धर्म राखने सू अबै श्रीजीकी ढीला ही पूजा करौ अरु ढीला ही शास्त्र बांच्यौ अरु कुवेष्यानै जिन मंदिर बाहरै निकार द्यौ। ए भगवानका अविनय बहुत करै । आपको पुनावै अरु देहराको घर सादृश्य कर लिया बातका महत पाप जति । ये गृहस्थी धर्मात्मा कुवेष्याने हलाहल खोटा धर्मका द्रोही जान वाका तजन किया । अरु श्री वीतराग देव सूं अरज करते भये । हे भगवान म्हां तौ थाका बचनाके अनुसार चाल हों तातै तेरापंथी होते सिवाय और कुदेवादिककौं हम नाहीं सवै है । वाका सेवन नर्कादिकका कारण है । अरु तुम स्वर्ग मोक्षके दाता हौ ताते तुम ही देव हो तुम ही गुरू हौ तुम ही धर्म हौ तातै तुम ही नै सेवौ हौ । और नै नाहीं सेवौ हौ ताते तुम ही नै सेवौ सो तेरापंथी सो म्हां तुमारौ आज्ञाकारी सेवक हौ अरु तुमनै छोड़ तुम्हारे प्रतपक्षी है कुदेवादिक ताको सेवै है सो वह हरामखोर है इस उपरांत संसारमें नाही. सो हरामखोर नर्कादिकके दुःख पावें है पावें बहुर सत होय है सो देवनके देव होय हैं वा गुरूके नाम होय है । सो तेरा प्रकारके चारित्रके धारक ऐसे निरग्रंथ दिगंबर गुरु ताकौ ही मानैः । अरु और ही परीग्रहीको नाही. मानै ताते गुरूकी अपेक्षा भी तेरापंथी संभव है । अरु तेरा प्रकारके चारित्रके पालनै वारे पूर्व गुरू भये ताको भी मानै । अरु विश्नुके सेवन वारे तीब्र कखाय ताके अवलोकन किये ही भय उपनै मानूं अवार. ही प्रानकू-हरेंगे ऐसे भयंकर कृरि दृष्टि सीके रागी मोह मदराका पानकर उन्मत्त भये इन्द्रीनके अत्यंत