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ज्ञानानन्द श्रावकाचार।
करै है थै म्हांके सतगुरु हौ वे कहै है । के पुन्यात्मा श्रावक हो । कौन दृष्टांत जैसे ऊंटका तौ व्याह अरु गंर्धवगीत गावने वारे वे तौ कहै है बींदका स्वरूप कामदेव साढस्य बन्या है अरु वे कहे हैं कैसा किन्नर जातके देवके कंठ साद्रश्य कंठसू राग गावै है। या सादृश्य श्रावक गुराकी शोभा जाननी । इहां कोई कहसी के थै अपना गुराकी दशा बरनई । अरु श्वेताम्बर आदि अन्यमतीन की दशा क्यों न बरनई वे तौ पान या वीच भी खोटा है ताकुं कहिये है भाई ए न्याय तौ नीकै होसी जद ब्राह्मणाके ही हाथकी रसोई निषद्ध छ । तौ चंडाल दिकके हाथकी रसोई लीन कैसे होसी । ऐसा जांयनां इहां कोई प्रश्न करै ऐसे नाना प्रकारके भेष कैसे भये ताकू कहिये हैं जैसे राजाके सुभट वैरीके शस्त्रप्रहार करि कायर होय भागें पाछै राजा याकू भाजे जान नगरमैं आवना मनै किया अरु बाहरि ही सौ कैईको कालौ मुख करि माथा मूढ ताकौ या कही के गधे चढ़ाई नगर दौल्या फेरौ, कैहीकू लाल कपड़ा पहिराये, केही कू चुरिया पहिराई, केही का रांड़ स्त्रीका सा भेष किया, केहीका सुहागल स्त्रीका भेस किया है कै इनमै भीख मंगाई इत्यादि नाना प्रकारके स्वांग कराय नगर बारै काड़ दिया। अरु जे रन विष बैरीको जीत आये मुजरा किया ताकू राजा नाना प्रकारके पद दिये अरु मुखसूं बड़ाई कीनी तौ यहां दृष्टांतके अनुसार दृष्टांत जाननी । तीर्थंकरादि देव त्रिलोकीनाथ सोई भया राजा ताके भक्त पुरुष भगवानकी मस्तक ऊपर आज्ञा धार मोह कर्म { लड़वानै ज्ञान वैराज्ञकी फौजि साथ ले वनवासी होय मोहसे लरयौ । पाछै मोहकी विषय कषाय फौज करि ज्ञान वैराज्ञ फौजको