________________
ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
-~
-~~~~~~~~
~~~~
~
~
~~...
अथवा देहराका द्रव्य उधार भी ना लेय । व पैसा दै मोल ना लेय । वा आप मनमें ऐसा विचारै, ए वस्तु ए द्रव्य देवगुरु धर्मके अर्थ है। पाछे वह वस्तु द्रव्य संकल्प किया माफक ना चहोडै । तौ याका अंश मात्र भी अपनै घर विषै रह्या हुवा निर्मायल सादृश्य जानना। निर्मायलका गृहनका पाप सादृश्य और पाप नाहीं। या पाप अनन्त संसारनै करै है नखसू ले मस्तक ताई शरीरका मैल उतारै नाहीं । ब्रती पुरुष सचित्त वस्तुसौ पूजा न करै । देहराकी भीतके आदि सरागपर नामके कारण ऐसा चित्राम न करावै । देव गुरु शास्त्रनै देखि तत्काल उठे। हाथ जोड़ नमस्कार करें। स्त्रीजननै एक साड़ी ओढ़ देहरे न आवै । ऊपर उपरनी आदि ओढ़ आवैअन पूजा विना देहराकी केसर चन्दन आदि तिलक नाहीं करै । स्नान व चन्दनका तिलक अरु आभूषणादि सिंगार बिना सरागी पुरुष तिनकौ पूजा नाहीं करनी । त्यागी पुरुषनै अटकाउ नाहीं । पूजा किया पाछे तिलक घोष नाखना । प्रतिमाजीके आगै चहोड़नी फूल सो आप सिरपर धरै नाहीं। वाकागृहण विषै निर्मायलका दोष लगै । गदिरा चौपर स्तरंज गंजीफा आदि कोई प्रकारके खेल न खेलै । वा होड़ नाहीं पाटै । देहरामें ववसाखा आदि अशुच क्रिया नाहीं करै। जुहार व्योहार आदि शृष्टाचार न करै। भांड क्रिया नाहीं करै । रे कारे नूं काखो कठोर वा तर्क लिये बचन वा मर्म छेद बचन मसकरी कुठा विषाद अदया मृषा कोई न रोकवौ । डांडवो इत्यादि बचन ना बोलै । कुलांट ना खाय पगाके दरबडी ना दाबै । हाड़ चाम केस आदि मंदिर विषै लै जाय नाहीं । मंदिरमें बिना प्रयोजन आह्या साह्या फिरै नाही.।