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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
कारण व पापनै कारण एसे स्थानक तानै दूर ही तजनै योग्य है । आगे श्री जैन मंदिर विषै अज्ञान वा कखाय कर चौरासी आक्षादान दोष लागै, अरु विचक्षण धर्म बुद्धि करि नहीं लागै ताका स्वरूप कहिये है । श्लेष मानापै नाहीं हास्य कौतूहल करे नाहीं। कलह करै नाहीं। कोई कला चतुराई करै नाहीं। नख चाम उपाड़ नाख नाहीं मलमूत्र छेपे नाहीं स्नान करै नाहीं गाली बोले नाहीं । केस मुड़ावै नाहीं । नोंह लिवावें नाहीं । लोहू कहावै नाहीं । गूमड़ा पीव आदि बिकार नाख नाहीं । नीला पीला पित्त नाखै नाहीं । बमन करे नाहीं। भोजन पान करै नाहीं ठांड़े दांत माहतूं अन्नादिक अस काढे नाहीं । सैनासन करै नाहीं । दांत मल, आंख मल, नख मल, नाक मल का? नाहीं । गलाका मैल, मस्तकका मैल, शरीरका मल, पगका मैल उतारै नाहीं । गृहस्थपनाकी बातें करै नाहीं । माता, पिता, कुटुंब, भ्राता, व्याही बहिन आदि लोक कि जनता श्रुश्रूषा करै नाहीं। सासु जिठानी ननद आदके पग लागै नाहीं । धर्म शास्त्र उपरांत लेखक विद्या न करै बांचै ही। श्रृंगारका चित्राम चित्रै नाहीं। कोई वस्तुका बटवारा करै नाहीं। दिव्यादिकका भंडार राखै नाहीं । अंगुली चटकावै नाहीं आलस करै नाहीं। भीतका आसरा लेबे नाहीं। गादी तकिया लगावै न हीं। पांव पसौर नाहीं । पग पर पग धरि बैठे नाहीं। छान्या थोप नाहीं। कपड़ा धोवै नाहीं, दाल दलै नाहीं, साल आदि कूटै नाहीं, पापड़ मुगौड़ी आदि सुखावै नाहीं, गाय भैस आदि तिर्यच बांधै नाहीं । राजाके भय करि भाज देहरै जाय नाहीं वा लुकै नाहीं 'रुदन करै नाहीं, राजा चोर स्त्री भोजन देश आदि विकथा न करें।