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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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गाजर, मूला, शकरकन्द, आधा फूल,मुंवारा, कूपल आद नरम वनस्पति विषै तासू अनंत गुना जीव पाईये हैं। सो ऐसा जान पाचौं थावरकी भी विशेषपनै दया पालनै, विना प्रयोजन थावर भी नहीं बिरोधना । अरु त्रस सर्व प्रकार नहीं विरोधना थावर की हिंसा बीचसे त्रसकी हिंसामें बड़ा दोष है । सो आरंभकी हिंसा बीच निरापराध जीव हतनका महा तीव्र पाप है । आगे दुवा इतका दोषको दिखाय है सो दुवायत विष दोय चार वरस पर्यंत स्याही रहै है । ता विषै असंख्यात त्रस जीव अनंत निगोद ऐसे सासता उपने है। सो यह नीलगरकै कुंडी साढस्य होय है। ताके हजार पांचसै वैभाग समान एक छोटी कुंडी ही है । या विर्षे जीवाकी हिंसा विशेष होय है तातै उत्तम पानीसों स्याही गाल प्रमाण सो लिखावा करै पीछे साझ समय वह स्याही मिहीन कपड़ामें सुखायले । प्रभात फेर भिंजोईये । ऐसे ही नित्य स्याही कर लेना ऐ प्रासुक है । यामें कोई प्रकार दोष नाहीं थोरौ प्रमाद छोड़वाकर अपरंपार नफा होय है। आगे धर्मात्मा पुरुषके रहनेका क्षेत्र कहीये है । जहां न्यायवान जैनी राजा होय नाज बलीता सोधा होय बिकलत्रय जीव थोरा होय । घरकी बा वारली फौजका उपद्रव न होय। सहरके दोन्यू गढ़ होय जिन मंदिर होय, साधर्मी होय, कोई जीवकी हिंस्या नहोष, बालक राजा ना होय, राज विषे बहु नायक न होंय, स्त्रीका राज न होय, पंच्याका स्थाप्या राज न होय, अनवैस बुद्धिके धारक राजा न होय औरकी अकलके अनुसार राजा कार्य न करै । नगर दोल्यू बिरानी फौजका घेरा न होय मिथ्यांती लोगांका प्रबल जोर न होय । इत्यादि दुःखनै