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ज्ञानानन्द श्रावकाचार । भला महूर्त देख गृहस्थाचार्य वाके ऊपर यंत्र मांडै । पीछे जंत्रका कोट्य विषै सुपारी अक्षत आदि द्रव्य धेरै । ताके धरनै कर ऐसा ज्ञान होय फलानी जायगा एता हाथ तलें मसानकी राख है। एता हाथ तलै हाड़ चाम है । पाछे वाकू खुदाय हाड़ चाम आदि अशुचि वस्तु परी काढ़े पीछे श्रेष्ठ नक्षत्र लग्न देखि नीव विष पाखान धेरै जी दिन विषै नीव लगावै ती दिनसू करावने हारा गृहस्थी ब्रह्मचर्य स्त्री सहित अंगीकार करै सो प्रतिष्ठा किये पीछे श्रीजी जिनमंदिर विषै विरानै तहां पर्यंत प्रतिज्ञा पालै और छान्या पानीसू काम करावै । चूनाको भट्टी घरै करावै नाहीं । प्राशुक ही मोल ले और कारीगर मंजूरांसू कामकी घनी ताकीद नाहीं करै । वाका रोजगार विषै कसर नाहीं करै । वाकै सदीव निराकुलता रहे ऐसा द्रव्य दै मंदिरका काम करावै । ईतौ धर्म कार्य विचारया है सो मोटा मोटा काम कराय चोखा काम होय है । मोटी वस्तु मोल लेय चोखी हाय है अर कृपणाता तन दुखित भुखितनै मदीव दान दे अर कारीगर मजूर चाकर आदि जे प्रानीजन ता ऊपर कोई प्रकार कखाय ना करै । सदा प्रसन्नचित्त ही रहै सारांकू विशेष हित जनावै । एक बांक्षवः कि कब श्रीजिनमंदिरकी पूर्णता होय । श्रीजिन विनयपूर्वक बिराजै और जिनवानीका व्याख्यान होय ताके निमित्त करि घना जीवाका कल्याण होय । जिन धर्मका उद्योत होय धर्मात्मा जीव ई स्थानक विषै धर्म साधन कर स्वर्ग मोक्ष विषै गमन करे और भी संसारका बंधन तोड़ि मोक्ष जावै । संसारका स्वरूप महा दुःखरूप है । सो फेर जिन धर्मके प्रताप करि न आऊं । बीतराग है सो स्वर्ग मोक्षके