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११२ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । हरामखोर है । जो ई तेरापंथी सो तुम्हारे आज्ञाकारी सेवक हैं । अरु तुमनै छोड़ तुम्हारे प्रतपक्षी हैं, कुदेवादिकको सेवै हैं सो वह हरामखोर है सो हरामखोरी उपरांत संसारमें पाप नाहीं सो वे हरामखोर नर्कादिकके दुःख पावै ही पावै । बहुरि मत होय है सो देवके नाम होय है वा गुरुके नाम होय है सो तेरा प्रकारके चरित्रके धारक ऐसे निर्ग्रन्थ दिगम्बर गुरु ना माने । अरु और परग्रहधारी गुरुकौ नाहीं मानै ताते गुरुकी अपेक्षा भी तेरापंथी संभव है। अरि तेरा प्रकारके चरित्र पालनै वारे पूर्व गुरु वर्य ता. को भी मानै । अरु सप्त बिसनकै सेवन हारे तीव्र कखाय ताके. अवलोकन किये ही भै उपजै मानूं अवार ही प्रान हरैगें ऐसे भयकरि कूरि दृष्टि स्त्रीकेरागी मोह मदराके पान कर उन्मत्त भये । इंद्री विषयके अत्यंत लोलपी मोलके चाकर सादृश्य ते गुरु कहिये है । अरु देवोंके मानसीक आहारकी इच्छा भये कंठमासौ अमृत अवै ताकरि तृप्ति होय ताकौ कहिये है। सो चार प्रकारके देव देवांगना ताकै पाइये है । बहुरि मज्जा आहार वीर्य नामा धात शरीरकै सहकारी होय ताकौ कहिये है । सो पंखींनके अंडे ताकें पाईये है सो पंखी गर्भ मासूं अंडा धेरै है वे केते दिन पंखीं कवला आहार विना ही वृद्धिनै प्राप्त होय है । सो वा विषै बीर्य धात पाईये है ताके निमित्त करि शरीर पुष्ट होय है। कोईके हस्तादिक लगायै वीर्य गल अंडा गल जाय है। बहुरि लेय आहार सर्वांग शरीर विष व्याप्त होय ताकौ कहिये है सो एकेन्द्रियादिक चौ थांवराकै पाइये है। जैसे बिरष मृतका जलको