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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
प्रासुक पानी ते रसोई करना उचित है। प्रासुक पानीको दोय पहिर पहिले बरताय देना | आगे राख्या यामें जीव उपजै है जीदानी याकौ होय नाहीं। ऐसे दयापूर्वक क्रिया सहित रसोई निपन ताकौ उज्जल कपड़ा पहर हाथ पांव धोय पत्राकू चा दुखित जीवकू दान देई । राग भाव छोड़ चौकी ऊपर भोजनकी थाली धर थाली ऊपर दृष्टि राखे, जीव जंतु देख मौन संजम सहित भोजन करै । ऐसा नाहींकै दया बिना अघोरीकी नाईं आप तौ खायले पात्र व दुखित जनवारनै आवै आप उठि जाय । ऐसा क्रपण महा रागी महा रोगी विषई दंड देने योग्य है । तातै धर्मात्मा पुरुष है ते विधिपूर्वक दान दें, पीछे भोजन करै, ऐसे दया सहित रागभाव रहित भोजनकी विधि कही । बहुरि रसोई जीमे पीछे ई विषै कूकरा बिलाई हाड़ चाम मैले वस्त्र सूद्र आय जाय । वा विशेष औंठ (जूंठन) पड़ी होय तो प्रभात आय वा परसौ आदि हमेसा रसोई कर वा समय पहली चूलाकी राख सर्व काढ़ी नाखिये । नमरासों जीवजंतुदेखि कोमल बुहारीसे बुहार देई पीछे चौका दीजे, चौका दिये विना ही राख फेंक कर बुहारी देह रसोइ करिये विना प्रयोजन चौका देना उचित नाहीं। चौका विषै जीवाकी हिंसा विशेष होवै है । अरु अशुम जायगा विषै रसोई करिये तो चौकाकी हिंसा बीच भी अक्रियाके निमित्तकरि राग भावका पाप विशेष होय है । तातें जामै थोड़ा पाप लागै, सो करना। धर्म दयामय जानना दया विना कार्यकारी नाहीं । अरु केई दुर्बुद्धी नान लकड़ीको धोवै है। तवेला चरू तवा आदि बासन ताका पैदा धोय आरसी समान उन्जल राखै है । मौकला पानी सोसा पड़े वा चौका दै है । स्त्रीके हाथकी