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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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काचां रह जाय तो वा विष नाना प्रकारके त्रस जीव उपजै हैं । तातै दोय घड़ी पहिला गरम करना उचित है। सो प्रथम ही आंबला आदि खटाई बतातां रुप्या दूध विषै डार जमाईये। वाकी मर्याद आठ पहरकी है । आजका जमाया प्रभात दहीकू कपड़ा विषै बांध वाकी मुगोड़ी तोड़ सुकाई है। पाछै और ही वाका जांवण दै दूध जमाईये । ऐसे दूध, दही आचरनै योग्य है। सुठ वा और खटाई वा जसद रुपाका भाजन कर जम जाय है । कोई दुराचारी जाठ गूजर अन्य जातका दूध दही पाईये है। ते धर्म विषै वा जगत विषै महा निंद्य है । और ऐसा सूद्र दहीकू लोया पीछे तो तुरत अग्नि ऊपर ताता करि जाईये । छांछि अथोंन ताई उठाय दीजे रात विषै राखेय नाहीं । रातकी राखी सवारै अनछान्या पानी समान है । ऐसे दूध देही छांछि क्रिया जाननी अरु केई विषै लोलुपी क्रियाका आसरा लेय गाय भैस मोल लै निज घर विषै आरम्भ बंधावै है। सो आरम्भमें बढ़ावै नाही ज्यों ज्यों आरम्भ बन्धै त्यों हिंसा वधै चौपद जात राखवेका विशेष पाप है सोई कहिये है सो वह तिर्यंच काय वा बिना अनछान्या पानी पिया बिना न रहै । अरु सूके त्रन छान्या पानीका मेर मिलना कठिन अरु जो कदाचित्त कठिनपनै वाका साधन राखिये तो विशेष आकुलता उपजै, आकुलता है सो कखायका बीज है। कखाय है सोई महा पाप है, बहुरि कदाचित वाकू भूखा तिसाया राखये शीत उष्ण मांछरादिके दुखका जतन न करिये . तो वाके प्राण पीड़े जाय, मोहवासो वोल्या जाय नाहीं। अरु याकू सासती कैसे खबर रहै। अरु शीत उष्णादि वाधा मेटे