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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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अत्यंत बंधै सो भेले जीववा विषै ऐसा अनेक तरहका पाप उपनै है। तातें सगा भाई, पुत्र, इष्ट मित्र वा धर्मात्मासा धर्मीके भेले जीमना उचित नाहीं । औंठ खावाका स्वभाव तौ चांडालकू कराका है। भेले खावाका स्वभाव ऊंच कुलकै पुरुषका नाहीं।
__ आगै रजस्वला स्त्रीका दोष कहिये। सामान्यपनौ महीनाके माहिं वाकी जो निस्थांन माहिंसूं ऐसो निन्द रुधिर विकारसमूह निकस है। ताके निमित्तकरि मनुष्य तिर्यंच केई पुरुष आंधा होय जाय। व आंखमें फूली परजाय, पापर, बड़ी, मुगोड़ी, लाल होय जाय इ सादिवाकी छाया देखवा कर कपड़ाका स्पर्स करि करवा कर तीन दिन पर्यंत अनेक औगुन उपजै है । याकै जा समय महा पापका उदय है। ब्रहछा समान है याका हाथकी स्पर्श वस्तु सर्व अलीन है। पीछे चौथे दिन वा केई आचार्य पांचवें दिन छटे दिन कहे हैं । भावार्थ:-छटे दिन व पांचवे दिन व चौथे दिन स्नान कर उजल कपड़ा पहिर भगवानका दर्शन कर पवित्र होय है। मुख्य पनै चौथा स्नान कर भरतार समीप जाय है। कोई मनुष सूद्र समांन याकू अपवित्र नाहीं गिने है । सो वह भी चांडाल सादृस्य है घना कहा कहिये । आगे दूध दही छांछि घृतकी क्रिया लिखिये हैं। गरडी ऊंट आदिका दूध तो अलीन है। या विषै दोहता दोहता त्रस जीव उपनै हैं। अरु गाय भैसकालीन है। सो छान्या पानीसूं दोहनेवारेके हाथ धुवाईये गाय भैंसको आंचल धुवाय चोख्या मांजा चरू वासन ताकों जल कर धोयवा विर्षे दुहाईये । पीछे दूजे वासनमें कपड़ातूं छानिये पीछे दोह्या पीछे दो घड़ी पहिले पी जाईये अथवा दो घड़ी पहिले उष्ण करिये। दो घड़ी उपरांत