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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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नहीं, तातै वां वेद नाहीं होय तातै वाका महा - पाप राखनै वारेको लगै । बहुरि वाके गोवरमूत्र विषै विशेष त्रस जीवकी रास उत्पन्न होय है । अरु ईधनका निमित्त कर सासता रातदिन चूला बाल्या करै । चूलाके निमित्तकरि छह ग्राम दाह करवां जितनो पाप लगे । तातै ऐसा जान चौपद राखना उचित नाहीं। बहुरि ताकी तेल्ही खानेका विशेष पाप है। घना दिनको दूध गाय भैसका पेट विषै रहै है । पीछे वे प्रसूत होय अरु ता समय वाके आंचलझं रक्त साढस्य निचोय काड़िये। वाकू उश्नकर जमाइये ताका आकार और ही तरहका होय जाय । ताकू देख गलान उपनै पीछे वैसो निन्द वस्तुको आचरिए तो वाके रागभावकी काईं पूछनौ । तातै अवश्य याका आचरन न करना । छलीका परसूत भया, पीछे आठ दिवसका अरु गायका दिवस दस पीछे। अरू भेसका पन्द्रह दिवस पीछे दुग्ध लैना योग्य है, पहली अभख्य है । अरु आधा दुग्ध वाके बच्छाकों छोड़िये। आगे कपड़ा धुवानें वरिगाबनैका दोष कहिये है । प्रथम तो वा कपड़ा विर्षे मल निमित्त कर लीख, जुवां आदि अनेक त्रस जीव उपजै हैं । सो वे जीव कूपमेंतें जीका पानीमें नासनै प्राप्त होय । पीछे वे कपराने दरियाव विष सिला ऊपर पछाड़ पछाड़ धोवै । सो पछाहती वार मींढ़क माछला पर्यंत अनगिनत छोटा बड़ा जीव कपडाके ऊपर तिमें आवै ताका कपडाकी साथ सिला ऊपर पछाड़तां जाय । सो पछाड़िवाकर जीवका खण्डन होय जाय । बहुरि वे तेजीका खारौ पानी दरियाव विष घनी दूर फैलें । वा बहती नदी होय तो घना दूर कहता चल्या जाय तो तहां पर्यंत जीवकों