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ज्ञानानन्द श्रावकाचार । प्राप्त होय है । आगे कांजीका दोष कहिये हैं छांछकी मर्यादा बिलोया । पाछे अथौन ताई की है, पाझै रह्या अनेक त्रस जीव उपजै हैं ज्यों घनाकाल ताईं रहै त्यों त्यों घना त्रस उपनै । जैसे रात बसाका अनछान्या जल अभक्ष है तैसे रात वसाकी छाछ अभक्ष है । सो एक तो यह दोष अरु छाछि विषै राई परै है। राईका निमित्त करि तत्काल छाछि विषे त्रस जीवाकी उतपत्ति होय है । ताही वास्ते राई छाछिका राय तौ अभक्ष है । एक दोष तो यह और छाछ विषै भुजिया पर है । सो एक बिदलका दोष बहुरि छाछि विषै मोकला पानी अरु लून परै है सोई ताका निमित्त पाय शीघ्र ही घना त्रस जीवकी उतपत्ति होय है । सो एक दोष यह पाछै दस पन्द्रह दिन ताई याकौ भखवौ करै है। जैसे धोवी छीया नीलगरके कुंडका जीव रहै । तैसे कांजीका जीवा रहा जानना । ज्यों ज्यों घना दिन कांजी रहै त्यों त्यों वाका स्वाद अधिक हौय है। सो अज्ञानी जीव इन्द्रीयाका लोलपी रानी रानी होय होय खाय जावै ए स्वाद त्रस जीवोंका मांस कलेवरका है । सो धिक्कार है ऐसे रागभावके ताईं। ऐसा अषाद वस्तूको न आधेरै । ऐसा ही दोष डोहा किरावका जानना । या विषै भीत्रस जीवघना उपनै है। आगेअथाना संधान ल्योंजीका दोष कहिये हैं। सोलून, घृत, तैलका निमित्त पाय नींबू आदिका अथाना विषं दोय चार दिन पर्यंत सरदी मिटै नाहीं । सो लून सरदीका निमित्त पाय त्रस जीवांकी उतपत्ती होय है। वा ही विषै मरै है। ऐसे जन्म मरण जहां ताई वाकी स्थित रहै तहां ताईं हुवा करै । ऐसे ही लौंनी संधान मुरब्बा विषै जीवाको रासका समूह जानना।