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ज्ञानानन्द श्रावकाचार। विषै वस्तू लालरूप परनवै । पीछे लोभके अर्थ जैसे कीड़ी नांन ल्याय विलमें एकठा करै । पीछे भीलादिक सकल पहुंचे सो वाके सर्व कुटुम्ब परवार सहित नाजसोर ल्यावै । पीछे सर्व कीड़ाका तो संधार होय नाज भील खाये जायँ तैसे ही मछिका त्रष्णाके बशीभूत हुवा लालकू एक स्थानक चूंकि थूकरैंक ढाके । पीछे ऐसौ होते होते धनी लाल एकत्र होय घना लालके रहने करि मिष्ट स्वादरूप परनवै ता विष समय समय लाखां कोड़ना बड़ा अंडा आंख्या देखिये तातें आदि दै और असंख्यात सूक्ष्म जीव उपनै हैं । अरु निगोदरास उपजै हैं । अरु तिस ही विषै माख्यां निहार करै है ताकौ भिष्टा भी बाही विषै एकठौ होय है । पीछे भील आदिक महा निर्दई वाकू पथरादि करि पाडें है। पार्छ वाके वच्चा सुधा अरु माहिला अंडाशुद्धा मसल मसल निचोय निचोय रस काड़ें है । पीछे पंसारी आदि निर्दय अक्रिय खान लेवें हैं। ता विष माग्वीकी डीम कोड़ी आदि अनेक त्रस जीव उड़ा है वा चपि जाय है । अरु दो चार वरस पर्यंत लोभी पुरुष संचय करे हैं ता विषै पूर्ववत् जा समय हालकी उतपत्ति भई ता समयसूं लगाय तहां ताई सहित रहै । तहां पर्यंत असंख्यात त्रस जीव सासता उपजै है । सो ऐसा सहत पंचामृत कैसे हुवा । अपना लोभक अर्थ न जीव कौन कौन अनर्थ न करें । अरु कांई कांई अषाद वस्तू न खाय तातै ए सहित मांस साढस्य है । मद्य मांस रहित तीनों एकसां है । सो याका खावा तो दूरी रहौ। औषधि मात्र भी याका स्पर्श करना उचित नाहीं तैसे जानना याको औषधि मात्र भी गृहन किया दीर्घ कालका संच्या पुन्य नासनै