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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
करि दया रहित होय है ताका किसब ही महा हिंसाका कारन हैं सो विशेषपर्ने कहिये है। नाज सस्ता होय सो मोल ल्यावै सो सस्ता तो बीधा घुना पुराना ही मिले सो बीना सोधा बीना नाजनें बात बिना देखें पीसै पाछें वह आटा बेसन मेदा महीनों पड़ा रह जाय ता विषै अगिनति त्रस जीव उपजै है । पीछे वैसा तो आटा अन छान्या मसकका पानी ताकरि उसने बीघा सूल्या आला गाभटी विषै रातनै वलीता बालें । अरु चामका घना दिनका वा सज्या वृत विषैवानें तलें । अरु रात्रितें अग्निका निमित्त करि दूर सो डांस, माक्षर, पतंग, माखी मट्टी में व कड़ाही में आय आय पड़े व तपत धुवांके निमित्त करि अनेक जीव मकड़ी बिसमरा कानखजूरा भरी कड़ाही में परै । पाछे वह मिठाई पकवान तुरत ही तो सारा बिक जाय नाहीं । अनुक्रमसों बिके सो बिकता बिकता महीना पन्द्रह दिन दो महीना पर्यंत पड़ा रहि जाय । ता विषै अनेक लटईला आदि परि चाले । अरु अस्पर्श सूद्रकूं वह मिठाई चें ताकी मीठी जंठी मिठाई पाछी अपना वासनमें डार है है । अरु धनाक दोई कलारि खत्री आदि अन्य जाति होय हैं । ताकी दया कहा पाईये । अरु कोई वैप्य कुलके भी कंदोई होय सो भी वा सादृस्य जानना अरु जल अन्न नून मिलाय घृतमें तलै सो वह समान ही है । संसारी जीवाने थोड़ा बहुत अटक में राखनै अर्थ सखरा निखरीका प्रमाण बाधा है । वस्तू विचारता दोन्यों एक है
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कोई जैनी कुल विषै रातनै अन्नका भक्षण छोड़ना अरु फलाहार आदि राख्या तो काई वह रात भोजनका त्यागी हुवा ? यदि रात्रिकीं परवानगी नहीं देसी तों अन्नादि सर्व ही