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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
तालासूं चड़ि आवै है अथवा जटी तटी ऊठीमूं कासा विषै आई डूबे है और निशाचर जीवनकूं रात्रिनै विशेष सूझे है । तातै रात्रिनै गमन घना करे है। सो गमन करते भोजन सामग्री विषै भी आई जाई है। पाछै ऐसा जीवाका समूहने कोई पशु सादृश्य मनुष्य निरहै हुवा खाई है तो वह मनुष्या मैं अघोरी है । पाछै नाना प्रकारके जीवने भखटा करि नाना प्रकारके रोग उपजै वा इच्छा छीण परे हैं । जैसा जैसा जीवन कै मासका जैसा विपाक होय तैसा ही रोग उत्पन्न होइ । कोडि उपजावै कोड होइ शूल होइ सकोदर अतीसार होइ अरु पेटमै गडारी परिचलै वाल सिरै बाई पित्त कफ उपजै इत्यादि अनेक रोगकी उत्पत्ति होय । अथवा अंधा होइ बुद्धि करि रहित होइ सो ऐसा दुख तौ इही पर्याय उपजै । पाछे पाका फल करि अनंत सर्पादिक खोटी पर्याय विषै जन्म पावै है परम्पराय नरकादि जाई है । ऐसे ही नरकसूं तिर्यच तिर्यंच सौं नरक केता ईक पयार्य नर्कका धारी पाछै निगोद माहीं जाइ परे पर्यंत भी निकसवौ दुर्लभ है और भी
है
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। पाछै उहांसं दीर्घकाल
दोष कहिये है । कीड़ी
भक्षन
तैं बुद्धि नाश होइ अरु जुवा भक्षन तै जलोधर रोग उपजै, माछी भक्षन तै वमन होइ, बालतै सुरभंग होइ, मकोडी ते कोड़ होइ, भंवरी तै सुन होई, कसारी तै कंपाइ होइ, आंख अंधी होइ ।
स जीवाका भक्षनमै मांसका दोष लागे १ महा हिंसा होइ २ अपच होय अपचतै अजीर्न होय ३ अजीर्नतै रोग होई ४ तिरखा लगै ५ अरु काम वधै ६ जहरतै मरन होइ ७ डांकनी भूत पिशाच व्यंतरादि भोजन झूठौ करि जाइ। ऐसा पाप करि