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ज्ञानानन्द श्रावकाचार।
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अन्न, विवेक बिना गाल्या जल, अरु विना देख्या वलीता (इंधन) ऐ तीन पाप कर रसोई उपनै सो रसोई मांस समान जानना। अरु ये तीन पाप रहित रसोई निपजै सो रसोई कहिये है। ताका स्वरूप कहिये हैं । प्रथम तो नाजका अऊ संग्रह न करना । दस दिन पन्द्रा दिनका पांच दश जायगा अवधि देख मोल ल्यावै । पीछे ताको दिन विषै नीका सोध बीन दिन ही विषै ताबड़ा माहें कपड़ातूं पोंछे तब पिसावै । पाछै लोह पीतल बांस आदि चाम बिना चालनीसू चाल लीनै । ऐसे तो आटाकी क्रिया जाननी ! वलीता छानानै फौड़ काढ फार जीव रहित प्रासुक लकड़ी वा कोइले ए बलिता ताकी शुद्धता है । अरु छाना गोबर रसोई विषै सर्व प्रकार अलीक है । अरु ता विषै जीवकी उत्पत्ति भी बिसेष है । अरु अंतर मुहूर्त सौ लगाई जहां पर्यंत वा विषै सरदी है । तहां पर्यंत अनेक त्रस नीव उपनै हैं । पाछे गोबरका सूकवा करि सारा नासनै प्राप्त होइ है । सूका पीछे बड़ा बड़ा ताका कलेवर पईमा पईसा भरि गिडाला आदि शंख्या देखिये है। पाछ फेर चतुर्मास आदि विषै सरदीका निमित्त पाइकर असंख्यात कुंथवा लट उपजै हैं । तातै छानाका बलीता तौ हिंसाका दोष कर सर्व प्रकार ही तननी । अरु लकड़ीका कोइला ग्रहनैं योग्य है । सो कोइला तो सर्व प्रकार त्रस थावर जीव रहित प्रासुक है। तातै मनुष्यनै बालना उचित है। तातै बुद्धिवान पुरुष विशेष पनै बीधी सूखी लकड़ी फार अववि देखकर गृहन करै ।या विषै आलस प्रमाद राखै नाही, या विषै पाप अगिनित अपार है। सो विवेककर तछ लाग है। तातै धर्मात्मा पुरुषनै वलीताकी सावधानी राखनी। पोली