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ज्ञानानन्द श्रावकाचार।
कह्य बात । पाछै वा खात• सारा खेत विषै बखेरता ऊपर सारे वखट फेरै ता पीछे बीज बोबै। पीछे मगसिरका महिनासू लगाई फागुन पर्यंत अनछान्या कुंवा बावड़ी तलाबका जल करि दिनप्रति ताई सीच्यां करै सो वा जल कर पाहिला त्रस थावर जीव तौ प्रलयन प्राप्त होइ नवा सरदीका निमित्त करि त्रस थावर जीव फेर उपनै ऐसौ ही दिन प्रति चार पांच महिना ताई पूर्व पूर्व जीव मरते जांय अपूर्व अपूर्व जीव उपजते जाय । ऐसे होते सन्ते अनेक उपद्रव करि निर्विघ्नपनै खेती घरमैं आवै । वा न आवै कदाचिद आवै तौ राजाका बीजकी दैनी चुकै वा न चुकै सो फल तौ जाकौ ऐसा अरु पाप पूर्वे कह्या तैसा । असंख्यातासंख्याता त्रस जीव अनंतानंत निगोद राशि आदि थावर जीवका घात एक नाजका कनकै वंदा अवै है। भावार्थ-ऐसी ऐसी हिंसा करि एक एक नाजका कना पैदा होय है । बहुरि केई या जानैगा खेती करती वार तौ सुखी होयगा ताको कहिये है। जहां पर्यंत खेती करनैका संग्रह हो है जहां पर्यंत राक्षस ते दैत्य दरिद्री कलंहरवत् ताका स्वरूप जानना अरु परभव विष नरकादि फल लोग है । तातै ज्ञानी विचक्षण पुरुष खेतीका किसब छोड़ी। ऐसे खेतीका दोष जानना सो प्रत्यक्ष चौड़े दीसे हैं ताकौ कहा लिखिये । अरि कुंवा बावड़ी तलाब खनाइवे का महल अटारी बनावनेका खेती हवेलीके पाप असंख्यात अनंत गुना पाप जानना । इति खेती धरती दोष । ____आगै रसोई करवाकी विधि कहिये है । सोई रसोई करवा विषे तीन बात करि विशेष पाप उपनै विना सोध्या