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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
६९ लुटाई अरु आप कायर होय भागे ताकू भगवानकी आज्ञा अनुसार विधाता कर्मनै गृहस्थपना रूप नगरमें तौ आया नाहीं दिया वाह्य ही राख्या अरु रक्तांवर पांटावर स्वेताबर जटाधारी कनफटा आदि नाना प्रकारके स्वांग बनाये अरु जे भक्त पुरुष मोहकर्मकी जयनै प्राप्त भये ताकौं अहंतदेव नाम नगरका राजा किया ताकी अपनै मुखकरि बहुत बड़ाई कीनी और भी अनागत काल विषै तीर्थकर होसी ऐसा याका स्वरूप जानना। ऐसा ग्यारा प्रतिमाका स्वरूप विशेषपनै कह्या । ___आगै रात्रि भोजनका स्वरूप वा दोष वा फल कहिये है । प्रथम तौ रात्रि विषै त्रस जीवाकी उत्पत्ति बहुत है सो बड़ा त्रसजीव तौ डांस माच्छर पतंग आदि आंख्यां देखिये है, जो महा छोटा जीव दिन विषै भी नजरां नाहीं आवै है ऐसा संख्यात असंख्यात उपजै है । अरु वाका स्वभाव ऐसा होय सो अग्नि विषै तौ दूरसेती भी आई झुकै है । ऐसा ही कोई वाके नेत्र इन्द्रियका विषय पीडै है । बहुरि सरदी बिगटा रस सजाति विषै बेठा हुवा चिपटी जाय है अरु कौड़ि मकोड़ि कुंथुवा कसार मकड़ी विसमरा आदि त्रस जीवाका समूह छुधाकरि पीड़ा हुवा वा नासिका नेत्र इन्द्रीका पीड़ा हुवा भोजन सामग्री विषै आई प्राप्त होई है । अथवा भोजन सामग्रीकू किया पाछै धनीवार हुई तो वही विषै मर्यादा उलचै पाछै घना त्रस जीवाका समूह उपनै । पाछै वही भोजनकू रात्रिनै कांसा विषै धरै पाछै ऊपरसुं माखी माछर टाड़रा कीड़ी मकोड़ी नाला विसमराका बच्चा आदि आई परे है वा कणसली सर्पका वच्चा आय पड़े है अथवा सारा कासा विषे