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ज्ञानानन्द श्रावकाचार । गुना असैनी पञ्चेन्द्रीका तासू असंख्यात गुना सैनी पञ्चेन्द्री मार वा का पाप है। सो अनछान्या पानीका एक चुलू विषै वे इन्द्री ते इन्द्री, चौइन्द्री, पञ्चेन्द्री, सैनी असैनी लाखां कोड्या तौ आकाशके विष पेहराकी रेन आया सांधा गमन करे ता साहश्य पंच प्रकारके त्रस जीव पावन हैं। सोनीका द्रष्टि करि देखिये तो ज्योंका त्यों नजर आवै । बहुरि तासूं छोटा जीव ताही के संख्यातवै भाग सूक्ष्म अवगाहनाके धारक असंख्यात पांच प्रकारके ऋस और भी पावनै है । ऐक ऐक नातनाका छिद्रमै असंख्यात त्रस जीवा युगपत पानी छानिती वार निकर जाइ है । इन्द्रिय गोचर नाहीं आवै, अवधिज्ञान व केवलज्ञान गम्य है। बहुरि कैईक पानी छानै भी हैं । अरु विलछानी जहांका तहां नीका नाहीं पहुंचाव है। तो वह पानी अनछान्या ही पिया कहिये भावै, तीसूं एक चुलू अनछान्या पानीका अपनै हाथसू डालौ वा वरतौ वा पीवौ वा औरनै प्यावो ताका पाप एक गांव मारा कैसा है। ऐसे हे भव्य तूं अनछान्या पानीको दोष जान अनछान्या पानी पीवौ भावै लोहु पीवौ अरु अनछान्या पानीसौ सापड़ौ भावै लोहुसौ सापड़ी। लोही बीचि भी अन छान्या पानी का विशेष दोष कहै । अरु लोहु तौ निंदनीक है ही । अरु अन छान्या पानीका वरतवा विषै असंख्यात त्रस जीवांका घात हो है। अरु जगत विषै निंद्य है, महा निर्दई पुरुष याके पाप करि भवि विर्षे रुलै है नर्क तिर्यचके क्लेशने पावै हैं, संसार समुद्रमांही सू निकसना दुर्लभ होय है । या समान पाप और नांही है घना कहा कहि ये जैनी पुरुषनका तीन चिन्ह है । एक तौ प्रतिमाके