________________
६०
ज्ञानानन्द श्रावकाचार |
१ विष्टा मूत्र १ चूहडा १ इन आठौनका तौ प्रत्यक्ष नेत्रा करि देखने हीका भोजन विषै अंतराय है । बहुरि आठ तौ पूर्व देखने विषै कह्या सोई । अरु सूका चर्म १ नख ९ केश १ ऊरात १ पांख १ अजमी स्त्री वा पुरुष १ वड़ा पञ्चेन्द्री तिर्यच १ ऋतुवंती स्त्री १ आखड़ीका भंग १ मल मूत्र करनेकी शंका ९ शूद्रका स्पर्श, कांसा विषै कीड़ा त्रस मृतक जीव निकसै वा हस्तादिक निज अंगसौ वे इन्द्री आदि छोटा बड़ा जीवका घात, इत्यादि भोजन समय स्पर्श होय तौ भोजन विषै अंतराय होइ है । बहुरि मरन आदिका दुख ताका विरह करि रोवता होइ ताकै सुननैका, लाय लागी होय तौ ताकै सुनवा की, नगरादिकका माराका धर्मात्मा पुरुषकौ उपसर्ग होई व कोई का नाक कान छेउनैका व कोई चोरादिकके मारने गया होई ताका व चंडालके बोलनैका व जिन बिंब व जिन धर्मके अविनयका व धर्मात्मा पुरुषके अविनयका व इत्यादि महा पापके वचन सत्यरूप आपनै भासै तौ ऐसे शब्द सुननें विषै भोजनकी अंतराय होय है ।। बहुरि भोजन करती बार आशंका उपजै या तरकारी तौ मांस सारखी है । वा लौही सारखी है। वा चाम सारखी है वा विष्टा वा शहद इत्यादिक निंद्य वस्तु सारखे भोजन विषै कल्पना उपजै अरु मनमें ग्लान होय आवै ।। अरु मन वाके चाखनै विषै औहौटा होय तौ भोजन विषै अंतराय है । अरु भोजन विषै निंद्य वस्तुको कल्पना तौ नाहीं उपजै अर यहांसे मनि विषैका जानपना होय तौ अंतराय नांही ॥ ऐसे देख वाके आठ ८ स्पर्शके वीस २० सुनने की दश ॥ १० ॥ मनका छह || ६ || सब मिल चारके चवालीस अंतराय