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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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शुद्धि कहिये सावध वचन बोलै नांही ६ काल शुद्धि काहिये विना देख्या विना. पूंछा हाथ पगि उठावै वा धरै नांही ७ ऐसे सात शुद्धिका स्वरूप जानना । आगे कायोत्सर्गके बाईस दोष कहिये है। कुआश्रित कहिये भीतको आसरो लेवौ १ लतावक्र कहिये वेलकी नाई हालता रहना २ स्तंभावष्टक कहिये थंभका आसरालेना ३ कुंचित्कहिये शरीरका संकोचना ४ स्तवेक्षा देखना ५ काकदृष्टि कहिये काक कैसी नाई देखना ६ सीर्ष कंपति कहिये मस्तकका कंपावना ७ भूकेष कहिये भंवर कैसी चंचलताई करना ८ उत रीति कहिये मस्तकका ऊचा करना ९ उन्मत्त कहिये मत्त वालाकी नाई चेष्टा करनी १० पिशाच कहिये भूत कैसी नाई चेष्टा करनी ११ अष्ट दिशे क्षण कहिये आठ दिशाकी तरफ चौधना १२ ग्रीवां वन कहिये नाग्रईको नमावै १३ मूक संज्ञा कहिये गूंगेकी नाई सैन करना १४ अंगुलि चलावन कहिये आंगुलि चलावन १५ निष्टीवन कहिये खखारना १६षलितनं कहिये खखारका नाखना १७ सारी गुह्यगृहन कहिये गुह्य अंग काटना १८ कापि मुष्ट कहिये काथोडीकी नाई मुठी बांधना १९ ग्रीवो त्रमन कहिये नाड़ीका उंचा करना २० श्रृंखलिताप कहिये सांकल कीसी नाईं पादका होना २१ मालिकोचलन कहिये कोई पीठ माथा ऊपरि तीकौ आश्रय लेना २२ अंग स्पर्सन कहिये अपना अंग सपर्सना २३ घोटकं कहिये घोड़ा कीसी नाई पादका करना २४ ऐसा चौवीस दोष कायोत्सर्गका जानना । आगे श्राव
कके चार प्रकार अंतराय कहिये हैं । मदिरा १ मांस: २ हाड़ . ३ काचा चर्म ४ चार अंगुल लोहूकी धारा वड़ा पचेन्द्री जनावर