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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
जानना ॥४४॥ केई मूरख अज्ञानी पाखंडी कलंगी राग भाव घटनैके कारन अरि अन्य जीवकी दया हेत ये अंतराय तौ पालै नाहीं ॥ अरु झूठा छोरानका मुखतै भ्रष्टा आदि खोटा बचन सुननेते अंतराय होना मानै ॥ पाछै झालर थाली बजाइ अंधा बहरा कैसी नाई देख्या अनदेख्या करै सुना अनसुना करै पाछै नाना प्रकारकी गरिष्ट गरिष्ट मेवा पकवान दही दुग्ध घृत तरकारी खाद्य अखाद्य के विचार विना त्रस थावर जीवका हिंसा अहिंसाके विचार विना कामोत्पादक वस्तु अघोरीकी नाई अनभावतै ठग ठग पेट भरै है। राजी होइ स्वाद लै है अरु भिखारीकी नाईं सरावगांकी खुसामद करि करि माग माग खाइ । जैसे कोई पुरुष सूक्ष्म थावराकी तौ रक्षा करै अरु बड़ा बड़ा त्रस जीवाकुं आंखमीच साना ही निगलै । अरु पाछै कहै म्है सूक्ष्म जीवाकी भी दया पालौ हों ऐसा काम करि बापरा गरीब भोला जीवनके धर्म अरु धनकुं ठगै है । पाछै आपुन साथि मोहमंत्र करि कुगति ले जाई । तैसे महाकालेश्वर देव अरु पर्वत ब्राह्मन मायामई इन्द्रनाल सादृश्य चमत्कार दिखाइ सगरराजाके वंशकुं जग्य विष होम्याकर नरक विषै प्राप्त किये अरु मुखतै ऐसा कहै जग्य विषै होम्या प्रानी वैकुंठ जाय है ऐसा आचार कुलिंगाका जानना । आगे सात जाइगा मौन करनाका स्वरूप कहिये हैं १ देवपूजा विर्षे २ सामायिक विषे ३ स्नान विषे ४ भोजन विषं ५ कुशील विषं ६ लघुदीर्घ बाधा विषं ७ वमन विर्षे इन सप्त मौनके धारक पुरुष हाथV व मुखसू सैनको नाहीं करें य हुंकार करें नाहीं । भागे बारह स्थान विर्षे श्रावकके जीवनकी दयाके अर्थ चंदोवा चाहिये १ पूजाजीके स्थानक ऊपर