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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।।
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का हस्त ऊपर । सो यासौ भी दातारकी उत्कृष्टता पात्रके दान विना और कौन कार्य विषै होय । अर जो वे मुनि रिद्धि धारी होइ तौ पंचाश्चर्य होइ ताकौ व्यौरा । रत्नवृष्टि १ पहुपवृष्टि २ देवदुंदभी आदि वादित्र ३ अरु देवाकै जयजयकार शब्द होय ४ गंधोदक वृष्टि यह ५ बात आश्चर्यकारी होय तातै याका नाम पंचाश्चर्य है। बहुरि तिहि दिन वा चार हाथकी रसोई विषै नाना प्रकारकी तरकारी वा पकवान सहित अमृतमई अटूट होय जाइ अरु वे रसोईशाला विषै सर्व चक्रवर्तिका कटक जुदा जुदा वैठ जीमै तौ भी सकुड़ाई होय नाही। अरु रसोई टूटै नांही ऐसा अतिशय वरतै । पाछै बड़ा बड़ा राजा नगरके लोग सहित अरु इन्द्रादिक देव त्यां कर वह दातार पूज्य होय। अरु बड़ाई जोग्य होय अरु वाका दीया दानकी अनुमोदना करि घना जीक महा पुन्यको उपार्ने । परंमपराय मोक्षनै पावै । सो सम्यग्दृष्टी तीन प्रकारके पात्रनै दान दै तौ स्वर्ग ही जाय । अरु मिथ्यादृष्टी दान दै तौ जघन्य मध्यम उत्कृष्ट भोगभूमि जाई । पाछै मोक्ष जाय ऐसा पात्रदानका ईलोक वा परलोक विष फलै है । अरु दुखित भुखित जीवानै करुना करि दान दीजै तौ वाका भी महा पुन्य होई है। सर्व सौं बड़ा सुमेर है तासूं भी बड़ा जंबूद्वीप है तासू भी बड़ा तीन लोक है तासू भी बड़ा अलोकाकाश द्रव्य है । पनि एतौ कछू दे नाहीं तातै याकी शोभा नाही। तासू भी बड़ा दातार है तासूं भी बड़ा अजाचीक त्यागी पुरुष है । तातै कोई अज्ञान मूरख कुबुद्धि अपघाती ऐसा फल जान करि भी . दान नाहीं करै है तौ वाकी लोभीकी वा अज्ञानकी कोई पूछनी